योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 71: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- भुवनाकाशे कालस्य असंख्या: परमाणव: (सन्ति) ते रत्नानां राशय: इव एकैका: व्यतिरिक्ता: (भवन्ति) । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- भुवनाकाशे कालस्य असंख्या: परमाणव: (सन्ति) ते रत्नानां राशय: इव एकैका: व्यतिरिक्ता: (भवन्ति) । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- लोकाकाश में कालद्रव्य के असंख्यात परमाणु (कालाणु) स्थित हैं । वे कालाणु रत्नराशि समान एक-एक एवं भिन्न-भिन्न अर्थात् लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाणु स्थित हैं । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- लोकाकाश में कालद्रव्य के असंख्यात परमाणु (कालाणु) स्थित हैं । वे कालाणु रत्नराशि समान एक-एक एवं भिन्न-भिन्न अर्थात् लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाणु स्थित हैं । </p> | ||
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Latest revision as of 10:14, 15 May 2009
कालद्रव्य की संख्या एवं उसकी व्यापकता -
असंख्या भुवनाकाशे कालस्य परमाणव: ।
एकैका व्यतिरिक्तास्ते रत्नानामिव राशय: ।।७१।।
अन्वय :- भुवनाकाशे कालस्य असंख्या: परमाणव: (सन्ति) ते रत्नानां राशय: इव एकैका: व्यतिरिक्ता: (भवन्ति) ।
सरलार्थ :- लोकाकाश में कालद्रव्य के असंख्यात परमाणु (कालाणु) स्थित हैं । वे कालाणु रत्नराशि समान एक-एक एवं भिन्न-भिन्न अर्थात् लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर एक-एक कालाणु स्थित हैं ।