पांडुकवन: Difference between revisions
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सुमेरु पर्वत का चतुर्थ वन। इसमें 4 चैत्यालय हैं। - देखें [[ लोक#3.6.4 | लोक - 3.6.4]]। | सुमेरु पर्वत का चतुर्थ वन। इसमें 4 चैत्यालय हैं। - देखें [[ लोक#3.6.4 | लोक - 3.6.4]]। | ||
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<p> सुमेरु पर्वत के चार वनों में एक वन । यह सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर स्थित है । यह सघन वृक्ष समूहों से युक्त है । इसमें चार उत्तुंग चैत्यालय, पांडुकशिला और सिंहासनों की रचना है । मध्य में चालीस योजन ऊँची स्वर्ग के अधोभाग में स्थित एवं स्थिर उत्तम चूलिका है । जब जिनेंद्र का इस पर अभिषेक होता है तो अभिषेक-जल से यह क्षीरसागर सा लगता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8.115-117, 9.25, </span>देखें [[ पांडुक#1 | पांडुक - 1]]</p> | <div class="HindiText"> <p> सुमेरु पर्वत के चार वनों में एक वन । यह सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर स्थित है । यह सघन वृक्ष समूहों से युक्त है । इसमें चार उत्तुंग चैत्यालय, पांडुकशिला और सिंहासनों की रचना है । मध्य में चालीस योजन ऊँची स्वर्ग के अधोभाग में स्थित एवं स्थिर उत्तम चूलिका है । जब जिनेंद्र का इस पर अभिषेक होता है तो अभिषेक-जल से यह क्षीरसागर सा लगता है । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 8.115-117, 9.25, </span>देखें [[ पांडुक#1 | पांडुक - 1]]</p> | ||
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Revision as of 16:55, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
सुमेरु पर्वत का चतुर्थ वन। इसमें 4 चैत्यालय हैं। - देखें लोक - 3.6.4।
पुराणकोष से
सुमेरु पर्वत के चार वनों में एक वन । यह सौमनस वन से छत्तीस हजार योजन ऊपर स्थित है । यह सघन वृक्ष समूहों से युक्त है । इसमें चार उत्तुंग चैत्यालय, पांडुकशिला और सिंहासनों की रचना है । मध्य में चालीस योजन ऊँची स्वर्ग के अधोभाग में स्थित एवं स्थिर उत्तम चूलिका है । जब जिनेंद्र का इस पर अभिषेक होता है तो अभिषेक-जल से यह क्षीरसागर सा लगता है । वीरवर्द्धमान चरित्र 8.115-117, 9.25, देखें पांडुक - 1