समयसार - आत्मख्याति टीका - कलश 48: Difference between revisions
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( शार्दूलविक्रीडित )
इत्येवं विरचय्य सम्प्रति परद्रव्यान्निवृत्तिं परां
स्वं विज्ञानघनस्वभावमभयादास्तिघ्नुवान: परम् ।
अज्ञानोत्थितकर्तृकर्मकलनात् क्लेशान्निवृत्त: स्वयं
ज्ञानीभूत इतश्चकास्ति जगत: साक्षी पुराण: पुमान् ॥४८॥