समयसार - आत्मख्याति टीका - कलश 46: Difference between revisions
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अथ जीवाजीवावेव कर्तृकर्मवेषेण प्रविशत:
( मन्दाक्रान्ता )
एक: कर्ता चिदहमिह मे कर्म कोपादयोऽमी
इत्यज्ञानां शमयदभित: कर्तृकर्मप्रवृत्तिम् ।
ज्ञानज्योति: स्फुरति परमोदात्तमत्यन्तधीरं
साक्षात्कुर्वन्निरुपधिपृथग्द्रव्यनिर्भासि विश्वम् ॥४६॥