युक्त्यनुशासन - गाथा 53: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Latest revision as of 11:56, 17 May 2021
आत्मांतराऽभावसमानता न
वागास्पदं स्वाऽऽश्रयभेदहीना ।
भावस्य सामान्यविशेषवत्त्वा-
दैक्ये तयोरन्यतरन्निरात्म ।।53।।
(176) अन्यापोह के वागस्पदत्व की असिद्धि―यहाँ क्षणिकवादी कहते हैं कि वस्तु नानात्मक हो, इसका प्रतिपादन करने वाला कोई शब्द प्रसिद्ध नहीं है, किंतु तथ्य यह है कि क्षणिकवादियों का जो अन्यापोहरूप सामान्य भाव है वह ही वचनों द्वारा कहा जा सकता है । क्षणिकवादियों का सिद्धांत है कि शब्द सीधे पदार्थ को नहीं बतलाते, किंतु उस पदार्थ को छोड़कर बाकी जितने पदार्थ हैं उनका अभाव बतलाते । जैसे किसी ने घड़ा शब्द कहा तो घड़ा शब्द का अर्थ घड़ा नहीं है क्षणिकवादियों के सिद्धांत के अनुसार, किंतु जितने अन्य पदार्थ हैं कपड़ा, बैंच आदिक वे सब नहीं हैं, यह घड़ा शब्द का अर्थ है । इसी को कहते हैं अन्यापोह । तो वचन के द्वारा अन्यापोह तो कहा जाता, पर नानात्मक अर्थ वचनों द्वारा नहीं कहा जाता ।
(177) उपर्युक्त शंका का समाधान―इस शंका के समाधान में अन्यापोह में यही तो माना गया कि अन्य पदार्थों का अभाव है । तो अन्य पदार्थों के स्वभाव का परित्याग है, ऐसी जो समानता बतलाते हो, तो बात कही कल्पित सब कुछ, मगर अपने आश्रयरूप भेद को नहीं माना गया । वह समानता किसमें घटित होती है? उस घड़ा आदि पदार्थ को तो मानते हो, नहीं हैं तो सामान्य कहा रहा? यह तो एक भरमाना रहा कि कोई शब्द बोला किसी अर्थ का संकेत करने को तो उस शब्द से अर्थ का संकेत तो नहीं हुआ, किंतु अन्य-अन्य पदार्थों के अभाव का संकेत होता है । तो ऐसा अन्यापोह शब्द का विषय नहीं है । सभी लोग समझते हैं कि जो शब्द बोला उसका जो वाच्य अर्थ है उस शब्द से उस अर्थ का एकदम संकेत होता है ।
(178) सामान्यविशेषात्मक पदार्थ में सामान्य या विशेष का निराकरण करने से वस्तु के अभाव का प्रसंग―पदार्थ सामान्यविशेषात्मक है, न कि केवल सामान्य पदार्थ हो या विशेष पदार्थ हो । तो शब्द जितने बोले जायेंगे उनका अर्थ सामान्यविशेषात्मक पदार्थ ही बनेगा । यह शंकाकार फिर कहता है कि पदार्थ भले ही सामान्यविशेषवान होता, मगर वचनगोचर सामान्य ही है, क्योंकि विशेष तो उसी का आत्मा है ꠰ इस तरह ये दोनों ही एक कहलाये ꠰ कौन एक कहलाये ? सामान्य, और कैसा वह सामान्य? अन्यापोहरूप । किसी पदार्थ का संकेत होना यह तो विशेष कहलाता है और बाकी पदार्थों का अभाव होना यह सामान्य कहलाता है । क्षणिकवादियों के सामान्य और विशेष का ऐसा स्वरूप है और वह विशेष सामान्य के प्रभावरूप से है, इसलिए अन्यापोह ही शब्द द्वारा वचन है, ऐसी शंकाकार की मंशा है । समाधान यह है कि सामान्य और विशेष यद्यपि दोनों एक वस्तु में रहते हैं, मगर स्वरूप उनका जुदा है । सामान्य और विशेष को सर्वथा एकरूप स्वीकार कर लेने पर कोई एक ही तो रहेगा, दूसरा मिट जायेगा । तो वे यह बतलायें कि सामान्य विशेष एक हो जानें पर कोई एक मिट गया तो वह कौनसा मिट गया? यदि कहें कि विशेष मिट गया, केवल सामान्य सामान्य ही रहा तो विशेष मिट जाने पर सामान्य रह ही नहीं सकता, क्योंकि ये दोनों अविनाभावी हैं । वस्तु में सामान्य स्वरूप न हो तो सामान्य नहीं ठहरता, वस्तुस्वरूप न हो तो सामान्य नहीं ठहरता, इस तरह पदार्थ सामान्यविशेषात्मक है और जो पदार्थ है वही शब्द द्वारा वाच्य होता है । इस तरह शब्द द्वारा अनेकांतात्मक पदार्थ ही वाच्य है, एकांतस्वरूप पदार्थ वाच्य नहीं है । वह शब्दों द्वारा वाच्य कैसे हो सकता है?