शीलपाहुड - गाथा 16: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:57, 17 May 2021
वायरणछंदवइसेसियववहारणायसत्थेसु ।
वेदेऊण सुदेसु य तेसु सुयं उत्तमं सीलं ।।16।।
(21) अनेक सुकलावों में शील की सर्वोत्तमता―व्याकरण छंद दर्शनशास्त्र व्यवहार ये समस्त शास्त्र और जैनशास्त्र जिनागम इन सबको जानकर भी अगर शील हो साथ में तब तो शोभा है और शील नहीं है तो ये सब कुछ पाकर भी व्यर्थ है । यहाँ शील के मायने आत्मा का ज्ञानस्वभाव है । सो आत्मा अपने ज्ञानस्वभाव का ही आदर करे, तो कहो कि वह शील का पालक है । सो जो पुरुष सब कुछ कलायें जानने पर आत्मशील को जानेगा तो वह सब कुछ उत्तम लगेगा और आत्मशील का परिचय नहीं है तो वे सब उसकी धार्मिक क्रियायें भी उसके लिए व्यर्थ हैं ।