शीलपाहुड - गाथा 29: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:57, 17 May 2021
सुणहाण गद्दहाण य गोपसुमहिलाण दीसदे मोक्खो ।
जे सोधंति चउत्थं पिच्छिज्जंता जणेहि सव्वेहिं ।।29।।
(60) मनुष्यगति की मोक्ष पुरुषार्थ के कर्तव्य से सकलता―चार पुरुषार्थ बताये गए है―(1) धर्म, (2) अर्थ, (3) काम और (4) मोक्ष । जिनमें पहले के जो तीन हैं वे तो साधारण हैं, संसारी जीव कर लेते हैं, पर मोक्ष नाम का जो चौथा पुरुषार्थ है वह सच्चा पुरुषार्थ हैं और वे पुरुष के अर्थ हैं, पुरुष ही उसे सम्हाल सकते हैं । जैसे कुत्ते, गधे, पशु-पक्षी, कीड़े-मकौड़े इनका तो मोक्ष नहीं होता, मोक्ष जिनका होगा मोक्ष पुरुषार्थ उनका हो सकता है । तो पुरुषों को ही मोक्ष होगा । आज के इस पंचमकाल में पुरुषों को भी मोक्ष नहीं होता, उसका कारण है हीन संहनन, पाप का वातावरण बना हुआ है, सब अच्छी बातें हीनता की ओर चल रही हैं । नहीं हो पाता मोक्ष, मगर मोक्ष आगे हो सके उसका विधान बना सकता है ना यह पुरुष? सम्यक्त्व तो पा सकता है, ज्ञान तो सही बना सकता है । तो ऐसे धर्म की साधना में यह अमूल्य भव पाकर प्रमाद न करना चाहिए ।