अज्ञानी पाप धतूरा न बोय: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: '''(राग सोरठ)''' <br> अज्ञानी पाप धतूरा न बोय ।।टेक ।।<br> फल चाखन की बार भरै दृग, म...) |
No edit summary |
||
Line 14: | Line 14: | ||
[[Category:Bhajan]] | [[Category:Bhajan]] | ||
[[Category:भूधरदासजी]] | [[Category:भूधरदासजी]] | ||
[[Category:आध्यात्मिक भक्ति]] |
Latest revision as of 01:13, 17 February 2008
(राग सोरठ)
अज्ञानी पाप धतूरा न बोय ।।टेक ।।
फल चाखन की बार भरै दृग, मरि है मूरख रोय ।।
किंचित् विषयनि सुख के कारण, दुर्लभ देह न खोय ।
ऐसा अवसर फिर न मिलैगा, इस नींदड़ी न सोय ।।१ ।।अज्ञानी. ।।
इस विरियां मैं धर्म-कल्प-तरु, सींचत स्याने लोय ।
तू विष बोवन लागत तो सम, और अभागा कोय ।।२ ।।अज्ञानी. ।।
जो जग में दुखदायक बेरस, इसही के फल सोय ।
यों मन `भूधर' जानिकै भाई, फिर क्यों भोंदू होय ।।३ ।।अज्ञानी. ।।