Category:Bhajan
From जैनकोष
अनुक्रमणिका के क्रम से विभिन्न कवियों के द्वारा रचित संपूर्ण भजन
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- अज्ञानी पाप धतूरा न बोय
- अति संक्लेश विशुद्ध शुद्ध पुनि
- अन्तर उज्जवल करना रे भाई!
- अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ
- अब अघ करत लजाय रे भाई
- अब घर आये चेतनराय
- अब पूरी कर नींदड़ी, सुन जिया रे! चिरकाल
- अब मेरे समकित सावन आयो
- अब मोहि जानि परी
- अब समझ कही
- अरहंत सुमर मन बावरे
- अरिरजरहस हनन प्रभु अरहन
- अरे जिया, जग धोखे की टाटी
- अरे हाँ रे तैं तो सुधरी बहुत बिगारी
- अरे हो अज्ञानी तूने कठिन मनुषभव पायो
- अरे हो जियरा धर्म में चित्त लगाय रे
- अरे! हाँ चेतो रे भाई
- अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी
- अहो यह उपदेशमाहीं
आ
- आकुलरहित होय इमि निशदिन
- आगै कहा करसी भैया
- आज मैं परम पदारथ पायौ
- आज सी सुहानी सु घड़ी इतनी
- आतम अनुभव आवै जब निज
- आतम अनुभव कीजै हो
- आतम अनुभव सार हो, अब जिय सार हो, प्राणी
- आतम काज सँवारिये, तजि विषय किलोलैं
- आतम जान रे जान रे जान
- आतम जाना, मैं जाना ज्ञानसरूप
- आतम जानो रे भाई!
- आतम महबूब यार, आतम महबूब
- आतम रूप अनूपम अद्भुत
- आतमज्ञान लखैं सुख होइ
- आतमरूप अनूपम है, घटमाहिं विराजै हो
- आतमरूप सुहावना, कोई जानै रे भाई ।
- आप भ्रमविनाश आप
- आपा प्रभु जाना मैं जाना
- आयो रे बुढ़ापो मानी, सुधि बुधि बिसरानी
- आरति कीजै श्रीमुनिराजकी, अधमउधारन आतमकाजकी
- आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी
- आरसी देखत मन आर-सी लागी
- आवै न भोगनमें तोहि गिलान
ऐ
क
- कबधौं मिलै मोहि श्रीगुरु मुनिवर
- कर कर आतमहित रे प्रानी
- कर मन! निज-आतम-चिंतौन
- कर रे! कर रे! कर रे!, तू आतम हित कर रे
- करौ रे भाई, तत्त्वारथ सरधान
- करौं आरती वर्द्धमानकी । पावापुर निरवान थान की
- कर्मनिको पेलै, ज्ञान दशामें खेलै
- कहा मानले ओ मेरे भैया
- कहे सीताजी सुनो रामचन्द्र
- काया गागरि, जोझरी, तुम देखो चतुर विचार हो
- कारज एक ब्रह्महीसेती
- काल अचानक ही ले जायगा
- काहे पाप करे काहे छल
- काहेको सोचत अति भारी, रे मन!
- कींपर करो जी गुमान
- कुमति कुनारि नहीं है भली रे
- कौन काम अब मैंने कीनों, लीनों सुर अवतार हो
ग
च
- चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ के
- चरखा चलता नाहीं (रे) चरखा हुआ पुराना (वे)
- चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव
- चित चिंतकैं चिदेश कब
- चित्त! चेतनकी यह विरियां रे
- चिदरायगुन सुनो मुनो
- चिन्मूरत दृग्धारी की मोहे
- चेतन अब धरि सहजसमाधि
- चेतन कौन अनीति गही रे
- चेतन खेलै होरी
- चेतन तैं यौं ही भ्रम ठान्यो
- चेतन निज भ्रमतैं भ्रमत रहै
- चेतन प्राणी चेतिये हो,
- चेतन यह बुधि कौन सयानी
- चेतन! तुम चेतो भाई, तीन जगत के नाथ
- चेतन! मान ले बात हमारी
- चेतनजी! तुम जोरत हो धन, सो धन चलत नहीं तुम लार
- चौबीसौं को वंदना हमारी
ज
- जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि
- जग में श्रद्धानी जीव जीवन मुकत हैंगे
- जगत जन जूवा हारि चले
- जगत में सम्यक उत्तम भाई
- जगदानंदन जिन अभिनंदन
- जपि माला जिनवर नामकी
- जबतैं आनंदजननि दृष्टि परी माई
- जम आन अचानक दावैगा
- जय जय जग-भरम-तिमिर
- जय श्री ऋषभ जिनंदा! नाश तौ करो स्वामी मेरे दुखदंदा
- जहाँ रागद्वेष से रहित निराकुल
- जाऊँ कहाँ तज शरन तिहारे
- जानके सुज्ञानी जैनवानी की सरधा लाइये
- जानत क्यों नहिं रे, हे नर आतमज्ञानी
- जानत क्यौं नहिं रे
- जानो धन्य सो धन्य सो धीर वीरा
- जिन के भजन में मगन रहु रे!
- जिन छवि तेरी यह
- जिन छवि लखत यह बुधि भयी
- जिन जपि जिन जपि, जिन जपि जीयरा
- जिन नाम सुमर मन! बावरे! कहा इत उत भटकै
- जिन रागद्वेष त्यागा वह सतगुरु हमारा
- जिन स्वपरहिताहित चीन्हा
- जिनबानी के सुनैसौं मिथ्यात मिटै
- जिनराज चरन मन मति बिसरै
- जिनराज ना विसारो, मति जन्म वादि हारो
- जिनरायके पाय सदा शरनं
- जिनवर-आनन-भान निहारत
- जिनवरमूरत तेरी, शोभा कहिय न जाय
- जिनवानी जान सुजान रे
- जिनवानी प्रानी! जान लै रे
- जिनवैन सुनत, मोरी भूल भगी
- जियको लोभ महा दुखदाई, जाकी शोभा (?)
- जिया तुम चालो अपने देश
- जीव तू अनादिहीतैं भूल्यौ शिवगैलवा
- जीव! तू भ्रमत सदीव अकेला
- जीव! तैं मूढ़पना कित पायो
- जीवन के परिनामनिकी यह
- जे दिन तुम विवेक बिन खोये
- जे सहज होरी के खिलारी
- जो आज दिन है वो, कल ना रहेगा, कल ना रहेगा
- जो तैं आतमहित नहिं कीना
- ज्ञाता सोई सच्चा वे, जिन आतम अच्चा
- ज्ञान ज्ञेयमाहिं नाहिं, ज्ञेय हू न ज्ञानमाहिं
- ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन
- ज्ञानी ऐसी होली मचाई
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै
- ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै 2
- ज्ञानी जीव निवार भरमतम
त
- तन देख्या अथिर घिनावना
- तुम चेतन हो
- तुम ज्ञानविभव फूली बसन्त, यह मन मधुकर
- तुमको कैसे सुख ह्वै मीत!
- तू काहेको करत रति तनमें
- तू तो समझ समझ रे!
- तू स्वरूप जाने बिना दुखी
- तू ही मेरा साहिब सच्चा सांई
- तेरी भगति बिना धिक है जीवना
- तेरी शांति छवि पे मैं बलि बलि जाऊँ
- तेरी शीतल-शीतल मूरत लख
- तेरी सुन्दर मूरत देख प्रभो
- तेरे ज्ञानावरन दा परदा
- तेरे दर्शन को मन दौड़ा
- तेरे दर्शन से मेरा दिल खिल गया
- तेरो करि लै काज वक्त फिरना
- तेरो संजम बिन रे, नरभव निरफल जाय
- तोकौं सुख नहिं होगा लोभीड़ा!
- तोड़ विषियों से मन जोड़ प्रभु से लगन
- तोरी पल पल निरखें मूरतियाँ
- तोहि समझायो सौ सौ बार
- त्यागो त्यागो मिथ्यातम, दूजो नहीं जाकी सम
- त्रिभुवन आनन्दकारी जिन छवि
- त्रिशला के नन्द तुम्हें वंदना हमारी
द
ध
- धन धन जैनी साधु अबाधित
- धन धन साधर्मीजन मिलनकी घरी
- धनि ते प्रानि, जिनके तत्त्वारथ श्रद्धान
- धनि मुनि जिन की लगी लौ शिवओरनै
- धनि मुनि जिन यह, भाव पिछाना
- धनि मुनि निज आतमहित कीना
- धन्य धन्य आज घड़ी कैसी सुखकार है
- धन्य धन्य है घड़ी आजकी
- धर्म बिन कोई नहीं अपना
- धिक! धिक! जीवन समकित बिना
- धोली हो गई रे काली कामली माथा की थारी
- ध्यान कृपान पानि गहि नासी
- ध्यान धर ले प्रभू को ध्यान धर ले