ज्ञानार्णव - श्लोक 1230: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
हिंसोपकरणादानं क्रूरसत्त्वेष्वनुग्रहं।
निस्त्रिंशतादिलिंगानि रौद्रे बाह्यानि देहिन:।।1230।।
हिंसा के उपकरण जो शस्त्र आदिक हैं उनका संग्रह करके ग्रहण करना यह रौद्रध्यान का चिन्ह है। तलवार को पैनी देखते ही जो खुश होता है, जो छुरी को देखकर मौज मानता है, यह ठीक है, बहुत रुचि से देखा है उसमें आशय कितने बुरे पड़े हुए हैं? तो जो पुरुष हिंसा के उपकरणों को ग्रहण करे किसी के वध के लिए प्रदान करे वे सब रौद्रध्यान हैं। ये रौद्रध्यान के चिन्ह हैं और एक चिन्ह यह है कि निर्दय मनुष्यों का अनुग्रह करके जो निर्दयाचित्त है, हिंसक है, शिकारी है, जीवों का वध करने वाला है ऐसे प्राणी का भला करना, उसकी सहायता करना, उसकी पूंजी बनाना आदिक ये सब रौद्रध्यान करने वाले पुरुषों के चिन्ह हैं। और निर्दयता का परिणाम होना ये सब रौद्रध्यानी पुरुष के बाह्य चिन्ह होते हैं। इस प्रकार हिंसानंद नामक रौद्रध्यान का वर्णन किया गया, अब मृषानंद नाम के द्वितीय रौद्रध्यान का वर्णन कर रहे हैं।