ज्ञानार्णव - श्लोक 1239: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
चौर्योपदेशबाहुल्यं चातुर्य चौर्यकर्मणि।
यच्चौर्यैकपरं चेतस्तच्चौर्यानंद इष्यते।।1239।।
अब रौद्रध्यान का तीसरा भेद चौर्यानंद है, उसका वर्णन कर रहे हैं। चोरी के कार्यों के उपदेश की अधिकता होती है अथवा उपदेश करना, चौर्य कर्म में चतुरता होना, चोरी के कार्यों में ही चित्त लगाये रहना, सो चौर्यानंद नाम का रौद्रध्यान है। खुद चोरी भी न करे और दूसरों को चोरी करने का उपाय बतावे वह सब चोरी है। चाहे सरकारी, सरकारी टैक्स वगैरह की चोरी हो, चाहे जनता के कार्यों के लुके छिपे करने की चोरी हो, उनका करना अथवा उपदेश करना सो चौर्यानंद रौद्रध्यान है। चौर्य कर्म में चतुराई मानना, तथा चोरी की विधियों में प्रवीणता अनुभव करना, मैं इन-इन विधियों से लोगों को धोखा दे सकता हूँ, यों चौर्यकर्म में चतुराई होना और उसका अहंकार रखना यह सब चौर्यानंद है। किसी से चीज खरीदने में यह चीज मेरे पास ज्यादा आ जाय, ऐसा चिंतन करना रौद्रध्यान कहलाता है।