ज्ञानार्णव - श्लोक 1621: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
सर्वज्ञाज्ञां पुरस्कृत्य सम्यगर्थान् विचिंतयेत्।
यत्र तद्ध्यानमाम्नातमाज्ञाख्यं योगिपुंगवै:।।1621।।
जिस ध्यान में सर्वज्ञदेव की आज्ञा को प्रधान करके पदार्थ का चिंतन किया जाता है उसे मुनिजनों ने आज्ञाविचय नाम का धर्मध्यान कहा है। जिनेंद्रदेव की आज्ञा को प्रधान करके जो तत्त्व का चिंतन होता है उसे आज्ञाविचय कहते हैं। यद्यपि इस ध्यान में कोई श्रोतापन नहीं है, नाना वाक्य प्रमाणं वाली बात नहीं है कि भगवान ने कहा इसलिए मानें इसलिए करें। वह ज्ञानी जीव परीक्षा वाला और परीक्षा कर करके तत्त्व को मान रहा है, मगर साथ में चूंकि यह जिनवचनों से ही प्रारंभ हुआ करता है, इस पात्रता में आया है, अत: तत्त्वचिंतन के समय भगवानके उपदेश को न भूलना, उनका परम उपकार मानना और वाक्यप्रमाण है, इस प्रकार की आज्ञाप्रधान मानकर इस तत्त्वचिंतन को करके धर्मध्यान करना है।