मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे: Difference between revisions
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Latest revision as of 01:17, 17 February 2008
(राग ख्याल)
मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे ।।टेक ।।
कामिनि तन कांतार जहाँ है, कुच परवत दुखदाय रे ।।
काम किरात बसै तिह थानक, सरवस लेत छिनाय रे ।
खाय खता कीचक से बैठे, अरु रावनसे राय रे ।।१ ।।मन. ।।
और अनेक लुटे इस पैंडे, वरनैं कौन बढ़ाय रे ।
वरजत हों वरज्यौ रह भाई, जानि दगा मति खाय रे ।।२ ।।मन. ।।
सुगुरु दयाल दया करि `भूधर', सीख कहत समझाय रे ।
आगै जो भावै करि सोई, दीनी बात जताय रे ।।३ ।।मन. ।।