ज्ञानार्णव - श्लोक 1827: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
इति वादिनि सुस्निग्धे सचिवेऽत्यंतवत्सले ।
अवधिज्ञानमासाद्य पौर्वापर्य स बुद्धयति ।।1827।।
सुरेश का अवधिज्ञानबल से सर्व रहस्य का प्रबोध―जब मंत्रियों ने उस नवीन उत्पन्न हुए सौधर्म इंद्र को स्वर्ग की विभूति का परिचय कराया बड़े मीठे वचनों से बड़ी प्रेमयुक्त वाणी से बड़ी नम्रता में और श्रद्धा प्रगट करने वाले वचनों से, उस इंद्र को संबोधित किया, उसका गुणानुवाद किया तो उस समय यह इंद्र स्वयं अवधिज्ञान को प्रकट कर के पहिले और बाद की समस्त बातों को स्पष्ट जान जाता है । यह देव जब उत्पन्न होता है तो कुछ ही मिनटों में यह जवान हो जाता है । मनुष्य तो 15-16 वर्षों में जवान हो पाते हैं पर देव कुछ ही मिनटों में युवा बन जाते हैं । उसे अंतर्मुहूर्त का समय कहा गया है । तो अंतर्मुहूर्त तक अवधिज्ञान नहीं हो पाता । क्षायोपशमिक ज्ञान तो है किंतु उसका उपयोग नहीं करते और अंतर्मुहूर्त बाद मंत्रियों ने बताया उसको सुनकर अवधिज्ञान को प्राप्त करता है और अवधिज्ञान के द्वारा सब कुछ पहिले और बाद की बातें समझ जाता है । किस प्रकार समझा सौधर्म इंद्र ने, उसका वर्णन आचार्यदेव कर रहे हैं ।