ज्ञानार्णव - श्लोक 595: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:34, 2 July 2021
पर्यंतविरसं विद्धि दशधान्यच्च मैथुनम्।
योषित्संगाद्विरक्तेन त्याज्यमेव मनीषिणा।।
मैथुन का आद्य दोष- प्रथम मैथुन है शरीर का सजाना, श्रृंगार करना, बहुत बढ़िया बाल रखना, और जैसे आजकल चल रहे हैं लिपिस्टिक, पाउडर वगैरह लगाना, खूब तड़क-भड़क के कपड़ों से अपने शरीर को सजाना, ये सब शरीर के संस्कार हैं। खूब मलमल के शरीर को धोना, घंटों तक स्नान करना, तेल फुलेल लगाना, बहुत-बहुत इस शरीर की संभाल करना, बहुत-बहुत साज श्रृंगार करना, रूपक बनाना, ये सब ब्रह्मचर्य के दोष हैं। इससे ब्रह्मचर्य घात का किसी न किसी अंश में पाप लगता ही रहता है। फिर दूसरी बात यह है कि शरीर श्रृंगार से बढ़कर फिर यह मनुष्य एक गरल वृत्ति में बढ़ जाता है, इस कारण अपना जो नियत काम है उसे खूब कीजिये। आजीविका का, परोपकार का, धर्म का काम करें, अपने हितकार्यों में लगे रहें, शरीर को अधिक सजाने श्रृंगार करने की ओर दृष्टि न दें। हाँ स्वास्थ्य के लिए जितना लाभदायक है साधारण सात्विक भोजन करें, साधारण वस्त्र पहिने और धर्मधारण की धुन में रहें। शरीर का संस्कार करना यह प्रथम नंबर का मैथुन बताया गया है।
मैथुन का द्वितीय व तृतीय दोष- दूसरा मैथुनप्रकार है पुष्ट रस का सेवन करना, बहुत बढ़िया मिष्टान्न पकवान वगैरह खाना, अनेक प्रकार की रसीली स्वादिष्ट चीजों का सेवन करना इस उद्देश्य से कि बहुत बल बढ़े और विषय सेवन की अधिक उत्तेजना जागृत हो यह दूसरे नंबर का दोष है। कामवासना के उद्देश्य से ये स्वादिष्ट रस भोगे जाते है। काम वासना का परिणाम नियम से कलुषित है। यह दूसरे प्रकार का मैथुन सेवन है। और बहुत-बहुत रस रसायन स्वादिष्ट भोजन अनेक प्रकार की औषधियों का भोजन करना भी पाप है। तीसरा मैथुन प्रकार बताया है गीत नृत्य आदिक का सुनना देखना। भगवान के भजन के समय जो गीत नृत्य आदिक होते हैं वे तो धर्म से संबंधित हैं, उनमें सुनने वालों को धर्मदृष्टि रखना चाहिए। यदि कोई वहाँ ही केवल रूप, रंग, गान, तान, कला इन पर ही दृष्टि रखे तो वह भी अपने उद्देश्य से च्युत है। फिर अन्यत्र गान, तान देखने का शौक होना और जैसे अब तो अनेक प्रकार की कंपनी थियेटर वगैरह ऐसे चलते हैं जिनमें केवल रूप, रंग, गान, तान की बात दिखती है, जिसमें केवल कामसेवन का प्रसंग है। वे सब तो अत्यंत अयोग्य चीजें हैं, जिनकी प्रकृति गीत, नृत्य आदिक से अपने मन को प्रसन्न करने की रहती है तो समझिये कि वह प्रवृत्ति भी ब्रह्मचर्य के दोष रूप है।
मैथुन का चतुर्थ प्रकार- चौथा मैथुन प्रकार है स्त्री का संसर्ग करना अर्थात् बोलचाल रखने का प्रसंग रखना, इसमें ब्रह्मचर्य का दोष है। सीधा मार्ग तो यह है कि गृहस्थ हैं तो अपनी आजीविका के कार्य में रहे, शेष समय सत्संग और धर्मपालन में रहे, यह कामसेवन कामवेदना का भोग एक बहुत बड़े पाप का फल है, जिसमें मनुष्य अपनी सब बुद्धि खो बैठता है और अपना सारा समय बरबाद कर देता है।