ज्ञानार्णव - श्लोक 893: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Latest revision as of 16:34, 2 July 2021
गृह्नतोऽस्य प्रयत्नेन क्षिपतो वा धरातले।
भवत्यविकला साधोरादानसमिति: स्फुटं।।
साधुत्वसाधना में आदाननिक्षेपणसमिति का स्थान- यह आदाननिक्षेपणसमिति का स्वरूप है। साधु किसी चीज को धरे अथवा उठाये तो ठीक-ठीक निरखकर पीछी से पीछे से पोंछकर धरें उठायें सो आदाननिक्षेपणसमिति है। मुनियों को अन्य वस्तुवों के धरने उठाने की तो नौबत है ही नहीं। एक शैया, आसन, शास्त्र, उपकरण, कमंडल इनको भली प्रकार देखकर फिर उठायें और रखें, यों यत्न से ग्रहण करें तो साधु के आदाननिक्षेपणसमिति बनती है। उसमें भी बहुत जल्दी उठाने धरने में दोष है, भले ही पीछी से पोंछकर उठायें किंतु झटककर प्रमादवश उठाया धरा गया है तो उसमें दोष है। वैसे तो गृहस्थों को भी इस आदाननिक्षेपणसमिति पर ध्यान देना चाहिए। किसी भी चीज को धरते उठाते समय यह निरख तो लेना चाहिए कि कोई जीव-जंतु तो नहीं है, जब किवाड़ लगाये तो कोनों में देख लेना चाहिए कि कोई जीव-जंतु तो नहीं है, अगर जीव-जंतु है और जल्दी से किवाड़ लगा दिया तो उन जीवों का घात हो जाता है। तो यथा संभव गृहस्थ को भी आदाननिक्षेपण की सावधानी पर ध्यान रखना चाहिए।