मोक्षशास्त्र - सूत्र 6-17: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:35, 2 July 2021
अल्पारंभपरिपग्रहत्वं मानुषस्य ।।6-17।।
(74) मनुष्यायु के आस्रवों के कारणों का वर्णन―मनुष्यायु के आस्रव के कारण नरकायु के आस्रव के कारणों से उल्टे हैं । नरकायु के आस्रव के कारण बहुत आरंभ और बहुत परिग्रहपना था, यहां मनुष्यायु के आस्रव के कारण अल्प आरंभ और अल्प परिग्रहपना बतलाया है । संकेत रूप से कहे गए अल्पारंभ परिग्रह का कुछ विस्तार इस प्रकार से करना, भद्र मिथ्यात्व अर्थात् मिथ्यादृष्टि होने पर भी भद्र परिणाम रहना, विनीत स्वभाव अर्थात् सबके प्रति, धर्म के प्रति विनय का स्वभाव रखना, प्रकृति भद्रता अर्थात् प्रकृति से भद्र अच्छे आशय वाला,
सबके कल्याण की भावना रखने वाला होना । मार्दव आर्जव परिणाम, परिणामों में नम्रता और सरलता का होना, ये सब परिणाम मनुष्यायु का आस्रव कराते हैं । सुख समाचार कहने में रुचि होना, जैसे अनेक लोग दुःख के समाचार झट कह डालते हैं, पर मनुष्यायु का आस्रव करने वाले पुरुष की ऐसी आदत नहीं होती । उसे दूसरों से भला व सुखमय समाचार कहने का शौक होता है । रेत में रेखा के समान क्रोधादिक होना, जैसे बालू में, रेत में कोई रेखा खींच दी जाये तो वह अधिक समय तक नहीं रहती ऐसे ही सामान्य क्रोधादिक होना ये सब मनुष्यायु के आस्रव कराने वाले परिणाम हैं । सरल व्यवहार होना, मायाचाररहित सबको विश्वास उत्पन्न कराने वाला व्यवहार होना, थोड़ा आरंभ होना, उद्यम आरंभ के कार्य अति अल्प होना, थोड़ा परिग्रह होना, बाह्य पदार्थों में लगाव कम होना, संतोष में सुखी होना अर्थात् संतोष करने की आदत होना और उस ही में अपने को सुखी अनुभवना ये सब मनुष्यायुकर्म का आस्रव कराने वाले हैं । हिंसा से विरक्त होना, किसी जीव की हिंसा का परिणाम न होना, खोटे कार्यों से अलग रहना, सज्जनों के, महापुरुषों के, बड़ों के स्वागत में तत्पर रहना, कम
बोलना, प्रकृति से मधुर होना, सबको प्रिय होना, उदासीन वृत्ति होना, ईर्ष्यारहित परिणाम होना, संक्लेश साधारण व अल्प रहना ये सब परिणाम मनुष्यायु के आस्रव के कारण हैं । गुरु देवता अतिथि की पूजा में शौक होना, दान करने का स्वभाव होना, जैसे कपोत लेश्या के परिणाम होते, पीत लेश्या के परिणाम होते, ऐसा परिणाम होना, मरण समय में धर्मध्यान में प्रवृत्ति होना ये सब परिणाम मनुष्यायु का आस्रव कराते हैं ।
अब मनुष्यायु के आस्रव का अन्य कारण भी कहते हैं―