प्रज्ञप्ति: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> विद्याधरों की एक विद्या । इनसे विमानों का निर्माण किया जाता था । राम और लक्ष्मण ने इसी विद्या से विमान निर्मित करके अपनी सेना लंका भेजी थी । इससे रूप में भी यथेष्ट परिवर्तन किया जा सकता था । <span class="GRef"> महापुराण 62.391, 522-523, 72, 78, 123 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.131 </span>रावण को भी यह विद्या प्राप्त थी । अर्चिमाली ने यह विद्या अपने पुत्र ज्वलनवेग को दी थी । वसुदेव को भी यह प्राप्त हो गयी थी । प्रद्युम्न ने इसे कनकमाला से प्राप्त किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 7.325-332, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.81-82, 27. | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> विद्याधरों की एक विद्या । इनसे विमानों का निर्माण किया जाता था । राम और लक्ष्मण ने इसी विद्या से विमान निर्मित करके अपनी सेना लंका भेजी थी । इससे रूप में भी यथेष्ट परिवर्तन किया जा सकता था । <span class="GRef"> महापुराण 62.391, 522-523, 72, 78, 123 </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#131|हरिवंशपुराण - 27.131]] </span>रावण को भी यह विद्या प्राप्त थी । अर्चिमाली ने यह विद्या अपने पुत्र ज्वलनवेग को दी थी । वसुदेव को भी यह प्राप्त हो गयी थी । प्रद्युम्न ने इसे कनकमाला से प्राप्त किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_7#325|पद्मपुराण - 7.325-332]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_19#81|हरिवंशपुराण - 19.81-82]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#13|हरिवंशपुराण - 27.13]1, 30. 37, 47.46-77 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- भगवान संभवनाथ की शासक यक्षिणी - देखें तीर्थंकर - 5.3 ।
- एक विद्या- देखें विद्या - 3 ।
पुराणकोष से
विद्याधरों की एक विद्या । इनसे विमानों का निर्माण किया जाता था । राम और लक्ष्मण ने इसी विद्या से विमान निर्मित करके अपनी सेना लंका भेजी थी । इससे रूप में भी यथेष्ट परिवर्तन किया जा सकता था । महापुराण 62.391, 522-523, 72, 78, 123 हरिवंशपुराण - 27.131 रावण को भी यह विद्या प्राप्त थी । अर्चिमाली ने यह विद्या अपने पुत्र ज्वलनवेग को दी थी । वसुदेव को भी यह प्राप्त हो गयी थी । प्रद्युम्न ने इसे कनकमाला से प्राप्त किया था । पद्मपुराण - 7.325-332, हरिवंशपुराण - 19.81-82,[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#13|हरिवंशपुराण - 27.13]1, 30. 37, 47.46-77