सुधर्म: Difference between revisions
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== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भगवान् वीर के पश्चात् दूसरे केवली हुए। अपर नाम लोहार्य था। समय-वी.नि.12-14 (ई.पू.515-503)-देखें [[ इतिहास#4.4 | इतिहास - 4.2]]। | <p class="HindiText">श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भगवान् वीर के पश्चात् दूसरे केवली हुए। अपर नाम लोहार्य था। समय-वी.नि.12-14 (ई.पू.515-503)-देखें [[ इतिहास#4.4 | इतिहास - 4.2]]।</p> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) तीर्थंकर महावीर के ग्यारह गणधरों में गौतम इंद्रभूति गणधर से प्राप्त श्रुत के धारक दूसरे गणधर इनसे जंबूस्वामी अंतिम केवली ने श्रुत धारण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 1.119, 74.34, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1. 60, 3.42, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-42, 19.206 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) तीर्थंकर महावीर के ग्यारह गणधरों में गौतम इंद्रभूति गणधर से प्राप्त श्रुत के धारक दूसरे गणधर इनसे जंबूस्वामी अंतिम केवली ने श्रुत धारण किया था । <span class="GRef"> महापुराण 1.119, 74.34, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#60|हरिवंशपुराण - 1.60]], 3.42, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-42, 19.206 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक मुनिराज । गिरिनगर के राजा चित्ररथ ने इनके उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ले ली थी । चित्ररथ के रसोइए ने इन्हें कड़वी तूंबी-आहार में दी थी जिससे इनके शरीर में विष फैल गया था । अपना मरण निश्चित जानकर इन्होंने ऊर्जयंतगिरि पर समाधिमरण किया और ये अहमिंद्र हुए । <span class="GRef"> महापुराण 71.271-275, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 33.150-155 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक मुनिराज । गिरिनगर के राजा चित्ररथ ने इनके उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ले ली थी । चित्ररथ के रसोइए ने इन्हें कड़वी तूंबी-आहार में दी थी जिससे इनके शरीर में विष फैल गया था । अपना मरण निश्चित जानकर इन्होंने ऊर्जयंतगिरि पर समाधिमरण किया और ये अहमिंद्र हुए । <span class="GRef"> महापुराण 71.271-275, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_33#150|हरिवंशपुराण - 33.150-155]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) महावीर के निर्वाण के पश्चात् हुए दस पूर्व और ग्यारह अंगधारी ग्यारह मुनियों में अंतिम मुनि । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1, 46 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) महावीर के निर्वाण के पश्चात् हुए दस पूर्व और ग्यारह अंगधारी ग्यारह मुनियों में अंतिम मुनि । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1, 46 </span></p> | ||
<p id="4">(4) सातवें बलभद्र नंदिषेण के पूर्वजन्म के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 235 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) सातवें बलभद्र नंदिषेण के पूर्वजन्म के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#235|पद्मपुराण - 20.235]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) तीसरे बलभद्र के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.246-247 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) तीसरे बलभद्र के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#246|पद्मपुराण - 20.246-247]] </span></p> | ||
<p id="6">(6) तीर्थंकर धर्मनाथ का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 61.37 </span></p> | <p id="6" class="HindiText">(6) तीर्थंकर धर्मनाथ का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 61.37 </span></p> | ||
<p id="7">(7) एक मुनि । इनसे रत्नपुर नगर के राजा मणिकुंडली के दोनों पुत्र दीक्षित हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 62.369-373 </span></p> | <p id="7" class="HindiText">(7) एक मुनि । इनसे रत्नपुर नगर के राजा मणिकुंडली के दोनों पुत्र दीक्षित हुए थे । <span class="GRef"> महापुराण 62.369-373 </span></p> | ||
<p id="8">(8) पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा श्रीधर के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> महापुराण 7.14, 16 </span></p> | <p id="8" class="HindiText">(8) पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा श्रीधर के दीक्षागुरु । <span class="GRef"> महापुराण 7.14, 16 </span></p> | ||
<p id="9">(9) तीसरे बलभद्र इनका अपर नाम धर्म था । <span class="GRef"> महापुराण 59.63, 71, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.290 </span></p> | <p id="9" class="HindiText">(9) तीसरे बलभद्र इनका अपर नाम धर्म था । <span class="GRef"> महापुराण 59.63, 71, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#290|हरिवंशपुराण - 60.290]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भगवान् वीर के पश्चात् दूसरे केवली हुए। अपर नाम लोहार्य था। समय-वी.नि.12-14 (ई.पू.515-503)-देखें इतिहास - 4.2।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर महावीर के ग्यारह गणधरों में गौतम इंद्रभूति गणधर से प्राप्त श्रुत के धारक दूसरे गणधर इनसे जंबूस्वामी अंतिम केवली ने श्रुत धारण किया था । महापुराण 1.119, 74.34, हरिवंशपुराण - 1.60, 3.42, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.41-42, 19.206
(2) एक मुनिराज । गिरिनगर के राजा चित्ररथ ने इनके उपदेश से प्रभावित होकर दीक्षा ले ली थी । चित्ररथ के रसोइए ने इन्हें कड़वी तूंबी-आहार में दी थी जिससे इनके शरीर में विष फैल गया था । अपना मरण निश्चित जानकर इन्होंने ऊर्जयंतगिरि पर समाधिमरण किया और ये अहमिंद्र हुए । महापुराण 71.271-275, हरिवंशपुराण - 33.150-155
(3) महावीर के निर्वाण के पश्चात् हुए दस पूर्व और ग्यारह अंगधारी ग्यारह मुनियों में अंतिम मुनि । वीरवर्द्धमान चरित्र 1, 46
(4) सातवें बलभद्र नंदिषेण के पूर्वजन्म के दीक्षागुरु । पद्मपुराण - 20.235
(5) तीसरे बलभद्र के दीक्षागुरु । पद्मपुराण - 20.246-247
(6) तीर्थंकर धर्मनाथ का पुत्र । महापुराण 61.37
(7) एक मुनि । इनसे रत्नपुर नगर के राजा मणिकुंडली के दोनों पुत्र दीक्षित हुए थे । महापुराण 62.369-373
(8) पूर्वविदेहक्षेत्र में मंगलावती देश के रत्नसंचयनगर के राजा श्रीधर के दीक्षागुरु । महापुराण 7.14, 16
(9) तीसरे बलभद्र इनका अपर नाम धर्म था । महापुराण 59.63, 71, हरिवंशपुराण - 60.290