पौरुष: Difference between revisions
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<p class="HindiText">पौरुष का अर्थ है पुरुषार्थ |</p> | |||
<p class="HindiText">पुरुष पुरुषार्थ प्रधान है, इसलिए लौकिक व अलौकिक सभी क्षेत्रों में वह पुरुषार्थ से रिक्त नहीं हो सकता। इसी से पुरुषार्थ चार प्रकार का है - धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। इनमें से अर्थ व काम पुरुषार्थ का सभी जीव रुचि पूर्वक आश्रय लेते हैं और अकल्याण को प्राप्त होते हैं। परंतु धर्म व मोक्ष पुरुषार्थ का आश्रय लेनेवाले जीव कल्याण को प्राप्त करते हैं। इनमें से भी धर्म पुरुषार्थ पुण्य रूप होने से मुख्यतः लौकिक कल्याण को देनेवाला है, और मोक्ष पुरुषार्थ साक्षात् कल्याणप्रद है। | <p class="HindiText">पुरुष पुरुषार्थ प्रधान है, इसलिए लौकिक व अलौकिक सभी क्षेत्रों में वह पुरुषार्थ से रिक्त नहीं हो सकता। इसी से पुरुषार्थ चार प्रकार का है - धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। इनमें से अर्थ व काम पुरुषार्थ का सभी जीव रुचि पूर्वक आश्रय लेते हैं और अकल्याण को प्राप्त होते हैं। परंतु धर्म व मोक्ष पुरुषार्थ का आश्रय लेनेवाले जीव कल्याण को प्राप्त करते हैं। इनमें से भी धर्म पुरुषार्थ पुण्य रूप होने से मुख्यतः लौकिक कल्याण को देनेवाला है, और मोक्ष पुरुषार्थ साक्षात् कल्याणप्रद है। | ||
<span class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2">पुरुषार्थ के भेद</strong> </span><br /> | <span class="HindiText"><strong name="1.2" id="1.2">पुरुषार्थ के भेद</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/3/4 </span><span class="SanskritGatha">धर्मश्चार्थश्च कामश्च मोक्षश्चेति महर्षिभिः। पुरुषार्थोऽयमुद्दिष्टश्चतुर्भेदः पुरातनैः। 4।</span> = <span class="HindiText">महर्षियों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार प्रकार का पुरुषार्थ कहा है। 4।<span class="GRef">( | <span class="GRef"> ज्ञानार्णव/3/4 </span><span class="SanskritGatha">धर्मश्चार्थश्च कामश्च मोक्षश्चेति महर्षिभिः। पुरुषार्थोऽयमुद्दिष्टश्चतुर्भेदः पुरातनैः। 4।</span> = <span class="HindiText">महर्षियों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार प्रकार का पुरुषार्थ कहा है। 4।<span class="GRef">(पद्मनंदी पंचविंशतिका/7/35)।</span> <br /> | ||
<span class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5">मोक्ष पुरुषार्थ ही महान् व उपादेय है</strong> </span><br /> | <span class="HindiText"><strong name="1.5" id="1.5">मोक्ष पुरुषार्थ ही महान् व उपादेय है</strong> </span><br /> | ||
<span class="GRef"> परमात्मप्रकाश/ | <span class="GRef"> परमात्मप्रकाश/मूल/2/3 </span> <span class="PrakritGatha">धम्महँ अत्थहँ कम्महँ वि एयहँ सयलहँ मोक्खु। उत्तमु पभणहिं णाणि जिय अण्णें जेण ण सोक्खु। 3।</span> = <span class="HindiText">हे जीव! धर्म, अर्थ और काम इन सब पुरुषार्थों में से मोक्ष को उत्तम ज्ञानी पुरुष कहते हैं, क्योंकि अन्य धर्म, अर्थ कामादि पुरुषार्थों में परमसुख नहीं है। 3। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> ज्ञानार्णव/3/5 </span><span class="SanskritGatha">त्रिवर्गं तत्र सापायं जन्मजातंकदूषितम्। ज्ञात्वा तत्त्वविदः साक्षाद्यतंते मोक्षसाधने। 5।</span> = <span class="HindiText">चारों पुरुषार्थों में पहले तीन पुरुषार्थ नाश सहित और संसार के रोगों से दूषित हैं, ऐसा जानकर ज्ञानी पुरुष अंत के परम अर्थात् मोक्षपुरुषार्थ के साधन करने में ही लगते हैं क्योंकि वह अविनाशी हैं। </span><br /> | <span class="GRef"> ज्ञानार्णव/3/5 </span><span class="SanskritGatha">त्रिवर्गं तत्र सापायं जन्मजातंकदूषितम्। ज्ञात्वा तत्त्वविदः साक्षाद्यतंते मोक्षसाधने। 5।</span> = <span class="HindiText">चारों पुरुषार्थों में पहले तीन पुरुषार्थ नाश सहित और संसार के रोगों से दूषित हैं, ऐसा जानकर ज्ञानी पुरुष अंत के परम अर्थात् मोक्षपुरुषार्थ के साधन करने में ही लगते हैं क्योंकि वह अविनाशी हैं। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> | <span class="GRef">पद्मनंदी पंचविंशतिका/7/25</span> <span class="SanskritText">पुंसोऽर्थेषु चतुर्षु निश्चलतरो मोक्षः परं सत्सुखः। शेषास्तद्विपरीतधर्मकलिता हेया मुमुक्षीरतः। ...। 25।</span> = <span class="HindiText">चारों पुरुषार्थों में केवल मोक्ष पुरुषार्थ ही समीचीन सुख से युक्त होकर सदा स्थिर रहनेवाला है। शेष तीन इससे विपरीत स्वभाव वाले होने से छोड़ने योग्य हैं। 25। <br /> | ||
</span><li class="HindiText"> पुण्य होने के कारण निश्चय से धर्म पुरुषार्थ हेय है- देखें [[ धर्म#4.5 | धर्म - 4.5]]।<br> | </span><li class="HindiText"> पुण्य होने के कारण निश्चय से धर्म पुरुषार्थ हेय है- देखें [[ धर्म#4.5 | धर्म - 4.5]]।<br> | ||
<li class="HindiText">देखें [[ पुरुषार्थ ]]।</li> | <li class="HindiText">विशेष जानकारी के लिए देखें [[ पुरुषार्थ ]]।</li> | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> जीवन के कर्त्तव्य । ये चार होते हैं ― धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । <span class="GRef"> महापुराण 2. 31-67, 120 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जीवन के कर्त्तव्य । ये चार होते हैं ― धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । <span class="GRef"> महापुराण 2. 31-67, 120 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
पौरुष का अर्थ है पुरुषार्थ |
पुरुष पुरुषार्थ प्रधान है, इसलिए लौकिक व अलौकिक सभी क्षेत्रों में वह पुरुषार्थ से रिक्त नहीं हो सकता। इसी से पुरुषार्थ चार प्रकार का है - धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष। इनमें से अर्थ व काम पुरुषार्थ का सभी जीव रुचि पूर्वक आश्रय लेते हैं और अकल्याण को प्राप्त होते हैं। परंतु धर्म व मोक्ष पुरुषार्थ का आश्रय लेनेवाले जीव कल्याण को प्राप्त करते हैं। इनमें से भी धर्म पुरुषार्थ पुण्य रूप होने से मुख्यतः लौकिक कल्याण को देनेवाला है, और मोक्ष पुरुषार्थ साक्षात् कल्याणप्रद है।
पुरुषार्थ के भेद
ज्ञानार्णव/3/4 धर्मश्चार्थश्च कामश्च मोक्षश्चेति महर्षिभिः। पुरुषार्थोऽयमुद्दिष्टश्चतुर्भेदः पुरातनैः। 4। = महर्षियों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चार प्रकार का पुरुषार्थ कहा है। 4।(पद्मनंदी पंचविंशतिका/7/35)।
मोक्ष पुरुषार्थ ही महान् व उपादेय है
परमात्मप्रकाश/मूल/2/3 धम्महँ अत्थहँ कम्महँ वि एयहँ सयलहँ मोक्खु। उत्तमु पभणहिं णाणि जिय अण्णें जेण ण सोक्खु। 3। = हे जीव! धर्म, अर्थ और काम इन सब पुरुषार्थों में से मोक्ष को उत्तम ज्ञानी पुरुष कहते हैं, क्योंकि अन्य धर्म, अर्थ कामादि पुरुषार्थों में परमसुख नहीं है। 3।
ज्ञानार्णव/3/5 त्रिवर्गं तत्र सापायं जन्मजातंकदूषितम्। ज्ञात्वा तत्त्वविदः साक्षाद्यतंते मोक्षसाधने। 5। = चारों पुरुषार्थों में पहले तीन पुरुषार्थ नाश सहित और संसार के रोगों से दूषित हैं, ऐसा जानकर ज्ञानी पुरुष अंत के परम अर्थात् मोक्षपुरुषार्थ के साधन करने में ही लगते हैं क्योंकि वह अविनाशी हैं।
पद्मनंदी पंचविंशतिका/7/25 पुंसोऽर्थेषु चतुर्षु निश्चलतरो मोक्षः परं सत्सुखः। शेषास्तद्विपरीतधर्मकलिता हेया मुमुक्षीरतः। ...। 25। = चारों पुरुषार्थों में केवल मोक्ष पुरुषार्थ ही समीचीन सुख से युक्त होकर सदा स्थिर रहनेवाला है। शेष तीन इससे विपरीत स्वभाव वाले होने से छोड़ने योग्य हैं। 25।
पुराणकोष से
जीवन के कर्त्तव्य । ये चार होते हैं ― धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । महापुराण 2. 31-67, 120