अनंतकायिक: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef"> मूलाचार/213-215</span> <span class="PrakritGatha">मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरुहा । समुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ।213। कंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवालपुप्फफलं । गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्वकाया य ।215। सेवाल पणय केणग कवगो कुहणो य बादरा काया । सव्वेवि सुहमकाया सव्वत्थ जलत्थलागासे ।214। </span>= | <span class="GRef"> मूलाचार/213-215</span> <span class="PrakritGatha">मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरुहा । समुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ।213। कंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवालपुप्फफलं । गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्वकाया य ।215। सेवाल पणय केणग कवगो कुहणो य बादरा काया । सव्वेवि सुहमकाया सव्वत्थ जलत्थलागासे ।214। </span>= | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"> मूलबीज अग्रबीज, पर्वबीज, कंदबीज, स्कंध बीज, बीजरुह और सम्मूर्छिम; ये सब वनस्पतियाँ प्रत्येक (अप्रतिष्ठित प्रत्येक) और <b>अनंतकाय</b> (सप्रतिष्ठित प्रत्येक) के भेद से दोनों प्रकार की होती हैं ।213। | <li class="HindiText"> मूलबीज अग्रबीज, पर्वबीज, कंदबीज, स्कंध बीज, बीजरुह और सम्मूर्छिम; ये सब वनस्पतियाँ प्रत्येक (अप्रतिष्ठित प्रत्येक) और <b>अनंतकाय</b> (सप्रतिष्ठित प्रत्येक) के भेद से दोनों प्रकार की होती हैं ।213। <span class="GRef">(पंचसंग्रह/प्राकृत 1/81 )</span> <span class="GRef">( धवला 1/1, 1, 43/गाथा 153/273 )</span> <span class="GRef">( तत्त्वसार/2/66 )</span>; <span class="GRef">( गोम्मटसार जीवकांड/186/423 )</span>; <span class="GRef">(पंचसंग्रह/संस्कृत/1/159)</span> । </li> | ||
<li class="HindiText"> सूरण आदि कंद, अदरख आदि मूल, छालि, स्कंध, पत्त, कौंपल, पुष्प, फल, गुच्छा, करंजा आदि गुल्म, वेल तिनका और बेंत आदि ये सम्मूर्छन प्रत्येक अथवा <b>अनंतकायिक</b> हैं ।214। </li> | <li class="HindiText"> सूरण आदि कंद, अदरख आदि मूल, छालि, स्कंध, पत्त, कौंपल, पुष्प, फल, गुच्छा, करंजा आदि गुल्म, वेल तिनका और बेंत आदि ये सम्मूर्छन प्रत्येक अथवा <b>अनंतकायिक</b> हैं ।214। </li> | ||
<li class="HindiText">जल की काई, ईंट आदि की काई, कूड़े से उत्पन्न हरा नीला रूप, जटाकार, आहार कांजी आदि से उत्पन्न काई ये सब बादरकाय जानने । जल, स्थल, आकाश सब जगह सूक्ष्मकाय जीव भरे हुए जानना ।215। <br /> | <li class="HindiText">जल की काई, ईंट आदि की काई, कूड़े से उत्पन्न हरा नीला रूप, जटाकार, आहार कांजी आदि से उत्पन्न काई ये सब बादरकाय जानने । जल, स्थल, आकाश सब जगह सूक्ष्मकाय जीव भरे हुए जानना ।215। <br /> | ||
<br> | |||
Latest revision as of 22:15, 17 November 2023
मूलाचार/213-215 मूलग्गपोरबीजा कंदा तह खंधबीजबीजरुहा । समुच्छिमा य भणिया पत्तेयाणंतकाया य ।213। कंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवालपुप्फफलं । गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह पव्वकाया य ।215। सेवाल पणय केणग कवगो कुहणो य बादरा काया । सव्वेवि सुहमकाया सव्वत्थ जलत्थलागासे ।214। =
- मूलबीज अग्रबीज, पर्वबीज, कंदबीज, स्कंध बीज, बीजरुह और सम्मूर्छिम; ये सब वनस्पतियाँ प्रत्येक (अप्रतिष्ठित प्रत्येक) और अनंतकाय (सप्रतिष्ठित प्रत्येक) के भेद से दोनों प्रकार की होती हैं ।213। (पंचसंग्रह/प्राकृत 1/81 ) ( धवला 1/1, 1, 43/गाथा 153/273 ) ( तत्त्वसार/2/66 ); ( गोम्मटसार जीवकांड/186/423 ); (पंचसंग्रह/संस्कृत/1/159) ।
- सूरण आदि कंद, अदरख आदि मूल, छालि, स्कंध, पत्त, कौंपल, पुष्प, फल, गुच्छा, करंजा आदि गुल्म, वेल तिनका और बेंत आदि ये सम्मूर्छन प्रत्येक अथवा अनंतकायिक हैं ।214।
- जल की काई, ईंट आदि की काई, कूड़े से उत्पन्न हरा नीला रूप, जटाकार, आहार कांजी आदि से उत्पन्न काई ये सब बादरकाय जानने । जल, स्थल, आकाश सब जगह सूक्ष्मकाय जीव भरे हुए जानना ।215।
और देखें वनस्पति-3.5 ।