विवर्द्धन: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> चक्रवर्ती भरतेश के चरमशरीरी तथा आज्ञाकारी पांच सौ पुत्रों में दूसरा पुत्र । अर्ककीर्ति इसका बड़ा भाई था । किसी समय चक्रवर्ती के साथ इस सहित नौ सौ तेईस राजकुमार वृषभदेव के समवसरण में गये । इन्होंने तीर्थंकर के कभी दर्शन नहीं किये थे । ये अनादि से मिथ्यादृष्टि थे । तीर्थंकर वृषभदेव की विभूति देखकर अंतर्मुहूर्त में ही ये सम्यग्दृष्टि होकर संयमी हो गये थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.130, 12.3-5 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> चक्रवर्ती भरतेश के चरमशरीरी तथा आज्ञाकारी पांच सौ पुत्रों में दूसरा पुत्र । अर्ककीर्ति इसका बड़ा भाई था । किसी समय चक्रवर्ती के साथ इस सहित नौ सौ तेईस राजकुमार वृषभदेव के समवसरण में गये । इन्होंने तीर्थंकर के कभी दर्शन नहीं किये थे । ये अनादि से मिथ्यादृष्टि थे । तीर्थंकर वृषभदेव की विभूति देखकर अंतर्मुहूर्त में ही ये सम्यग्दृष्टि होकर संयमी हो गये थे । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#130|हरिवंशपुराण - 11.130]], 12.3-5 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:22, 27 November 2023
चक्रवर्ती भरतेश के चरमशरीरी तथा आज्ञाकारी पांच सौ पुत्रों में दूसरा पुत्र । अर्ककीर्ति इसका बड़ा भाई था । किसी समय चक्रवर्ती के साथ इस सहित नौ सौ तेईस राजकुमार वृषभदेव के समवसरण में गये । इन्होंने तीर्थंकर के कभी दर्शन नहीं किये थे । ये अनादि से मिथ्यादृष्टि थे । तीर्थंकर वृषभदेव की विभूति देखकर अंतर्मुहूर्त में ही ये सम्यग्दृष्टि होकर संयमी हो गये थे । हरिवंशपुराण - 11.130, 12.3-5