विवर्द्धन
From जैनकोष
चक्रवर्ती भरतेश के चरमशरीरी तथा आज्ञाकारी पांच सौ पुत्रों में दूसरा पुत्र । अर्ककीर्ति इसका बड़ा भाई था । किसी समय चक्रवर्ती के साथ इस सहित नौ सौ तेईस राजकुमार वृषभदेव के समवसरण में गये । इन्होंने तीर्थंकर के कभी दर्शन नहीं किये थे । ये अनादि से मिथ्यादृष्टि थे । तीर्थंकर वृषभदेव की विभूति देखकर अंतर्मुहूर्त में ही ये सम्यग्दृष्टि होकर संयमी हो गये थे । हरिवंशपुराण - 11.130, 12.3-5