विद्युद्दंष्ट्र: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) एक विद्याधर । यह विजयार्ध पर्वत के गगनवल्लभ नगर के राजा वज्रदंष्ट्र और रानी विद्युत्प्रभा का पुत्र था । इसके पिता मुनि संजयंत इसके पूर्वभव के बैरी थे । वे किसी समय वीतशोका नगरी के भीमदर्शन-श्मशान में प्रतिमायोग से विराजमान थे । यह इसी मार्ग से कहीं जा रहा था । इन्हें तप में लीन देखकर पूर्व बैर के कारण यह भरतक्षेत्र संबंधी विजयार्ध पर्वत के दक्षिणभाग के समीप वरुण पर्वत पर उठा ले गया था । यहाँ से इसने उन्हें इला-पर्वत के दक्षिण में हरिद्वती, चंडवेगा, गजवती, कुसुमवती और स्वर्णवती नदियों के संगम पर अगाध जल में छोड़ा था । इसने विद्याधरों को राक्षस बताकर इन्हें मार डालने के लिए प्रेरित किया था । फलस्वरूप विद्याधरों ने उन्हें शस्त्र मार-मार कर सताया । संजयंत मुनि तो केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण को प्राप्त हुए किंतु मुनि के भाई जयंत के जीव धरणेंद्र को जैसे ही उपसर्ग-वृतांत ज्ञात हुआ कि उसने आकर उसकी समस्त विद्याएँ हर ली थीं । वह इसे मारने को तैयार हुआ ही था कि आदित्याभ लांतवेंद्र ने आकर धरणेंद्र को ऐसा करने से रोककर इसे मरण से बचा लिया था । इसका अपर नाम विद्युद्दृढ़ था । विद्याओं से रहित होने पर पुन: विद्या-प्राप्ति के लिए धरणेंद्र ने इसे संजयंत मुनि के चरणों में तपश्चरण करना एक उपाय बताया था । जिनप्रतिमा, मंदिर तथा मुनियों के ऊपर गमन करने से विद्याएँ नष्ट हो जाती हैं ऐसा ज्ञातकर इसने संजयंत मुनि के पादमूल में तपश्चरण किया और पुन: विद्याएँ प्राप्त कर ली थीं । अंत में दृढ़रथ पुत्र को राज्य सौंपकर तपश्चरण करते हुए मरकर यह स्वर्ग गया । <span class="GRef"> महापुराण 59.116-132, 190-191, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 5. 25-33, 47, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 27.5-18, 121 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) एक विद्याधर । यह विजयार्ध पर्वत के गगनवल्लभ नगर के राजा वज्रदंष्ट्र और रानी विद्युत्प्रभा का पुत्र था । इसके पिता मुनि संजयंत इसके पूर्वभव के बैरी थे । वे किसी समय वीतशोका नगरी के भीमदर्शन-श्मशान में प्रतिमायोग से विराजमान थे । यह इसी मार्ग से कहीं जा रहा था । इन्हें तप में लीन देखकर पूर्व बैर के कारण यह भरतक्षेत्र संबंधी विजयार्ध पर्वत के दक्षिणभाग के समीप वरुण पर्वत पर उठा ले गया था । यहाँ से इसने उन्हें इला-पर्वत के दक्षिण में हरिद्वती, चंडवेगा, गजवती, कुसुमवती और स्वर्णवती नदियों के संगम पर अगाध जल में छोड़ा था । इसने विद्याधरों को राक्षस बताकर इन्हें मार डालने के लिए प्रेरित किया था । फलस्वरूप विद्याधरों ने उन्हें शस्त्र मार-मार कर सताया । संजयंत मुनि तो केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण को प्राप्त हुए किंतु मुनि के भाई जयंत के जीव धरणेंद्र को जैसे ही उपसर्ग-वृतांत ज्ञात हुआ कि उसने आकर उसकी समस्त विद्याएँ हर ली थीं । वह इसे मारने को तैयार हुआ ही था कि आदित्याभ लांतवेंद्र ने आकर धरणेंद्र को ऐसा करने से रोककर इसे मरण से बचा लिया था । इसका अपर नाम विद्युद्दृढ़ था । विद्याओं से रहित होने पर पुन: विद्या-प्राप्ति के लिए धरणेंद्र ने इसे संजयंत मुनि के चरणों में तपश्चरण करना एक उपाय बताया था । जिनप्रतिमा, मंदिर तथा मुनियों के ऊपर गमन करने से विद्याएँ नष्ट हो जाती हैं ऐसा ज्ञातकर इसने संजयंत मुनि के पादमूल में तपश्चरण किया और पुन: विद्याएँ प्राप्त कर ली थीं । अंत में दृढ़रथ पुत्र को राज्य सौंपकर तपश्चरण करते हुए मरकर यह स्वर्ग गया । <span class="GRef"> महापुराण 59.116-132, 190-191, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#25|पद्मपुराण - 5.25-33]], 47, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#5|हरिवंशपुराण - 27.5-18]], 121 </span></p> | ||
<p id="2">(2) विद्याधरों के राजा नमि का वंशज । यह राजा सुवक्त्र का पुत्र और विद्युत्वान् का पिता था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.20, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 13.24 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) विद्याधरों के राजा नमि का वंशज । यह राजा सुवक्त्र का पुत्र और विद्युत्वान् का पिता था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#20|पद्मपुराण - 5.20]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_13#24|हरिवंशपुराण - 13.24]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) यादवों का पक्षधर एक विद्याधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 51.3 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) यादवों का पक्षधर एक विद्याधर । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_51#3|हरिवंशपुराण - 51.3]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) चक्रवर्ती वज्रायुध का पूर्वभव का बैरी । इसने वज्रायुध को नागपाश में बांधकर ऊपर से शिला रख दी थी किंतु वज्रायुध ने शिला के सौ टुकड़े कर दिये तथा नागपाश को निकाल कर फेंक दिया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 5. 32-36 </span></p> | <p id="4" class="HindiText">(4) चक्रवर्ती वज्रायुध का पूर्वभव का बैरी । इसने वज्रायुध को नागपाश में बांधकर ऊपर से शिला रख दी थी किंतु वज्रायुध ने शिला के सौ टुकड़े कर दिये तथा नागपाश को निकाल कर फेंक दिया था । <span class="GRef"> पांडवपुराण 5. 32-36 </span></p> | ||
<p id="5">(5) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी का राजा । इसकी रानी अनिलवेगा तथा पुत्र सिंहरथ था । <span class="GRef"> महापुराण 63.241, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.65-66 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी का राजा । इसकी रानी अनिलवेगा तथा पुत्र सिंहरथ था । <span class="GRef"> महापुराण 63.241, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 5.65-66 </span></p> | ||
<p id="6">(6) एक विद्याधर । यह विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी मेघकूट नगर के स्वामी विद्याधर कालसंवर और रानी कांचनमाला का पुत्र था । यह पाँच सौ भाइयों में ज्येष्ठ था । <span class="GRef"> महापुराण 72.54-55, 85 </span>देखें [[ प्रद्युम्न ]]</p> | <p id="6" class="HindiText">(6) एक विद्याधर । यह विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी मेघकूट नगर के स्वामी विद्याधर कालसंवर और रानी कांचनमाला का पुत्र था । यह पाँच सौ भाइयों में ज्येष्ठ था । <span class="GRef"> महापुराण 72.54-55, 85 </span>देखें [[ प्रद्युम्न ]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
(1) एक विद्याधर । यह विजयार्ध पर्वत के गगनवल्लभ नगर के राजा वज्रदंष्ट्र और रानी विद्युत्प्रभा का पुत्र था । इसके पिता मुनि संजयंत इसके पूर्वभव के बैरी थे । वे किसी समय वीतशोका नगरी के भीमदर्शन-श्मशान में प्रतिमायोग से विराजमान थे । यह इसी मार्ग से कहीं जा रहा था । इन्हें तप में लीन देखकर पूर्व बैर के कारण यह भरतक्षेत्र संबंधी विजयार्ध पर्वत के दक्षिणभाग के समीप वरुण पर्वत पर उठा ले गया था । यहाँ से इसने उन्हें इला-पर्वत के दक्षिण में हरिद्वती, चंडवेगा, गजवती, कुसुमवती और स्वर्णवती नदियों के संगम पर अगाध जल में छोड़ा था । इसने विद्याधरों को राक्षस बताकर इन्हें मार डालने के लिए प्रेरित किया था । फलस्वरूप विद्याधरों ने उन्हें शस्त्र मार-मार कर सताया । संजयंत मुनि तो केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण को प्राप्त हुए किंतु मुनि के भाई जयंत के जीव धरणेंद्र को जैसे ही उपसर्ग-वृतांत ज्ञात हुआ कि उसने आकर उसकी समस्त विद्याएँ हर ली थीं । वह इसे मारने को तैयार हुआ ही था कि आदित्याभ लांतवेंद्र ने आकर धरणेंद्र को ऐसा करने से रोककर इसे मरण से बचा लिया था । इसका अपर नाम विद्युद्दृढ़ था । विद्याओं से रहित होने पर पुन: विद्या-प्राप्ति के लिए धरणेंद्र ने इसे संजयंत मुनि के चरणों में तपश्चरण करना एक उपाय बताया था । जिनप्रतिमा, मंदिर तथा मुनियों के ऊपर गमन करने से विद्याएँ नष्ट हो जाती हैं ऐसा ज्ञातकर इसने संजयंत मुनि के पादमूल में तपश्चरण किया और पुन: विद्याएँ प्राप्त कर ली थीं । अंत में दृढ़रथ पुत्र को राज्य सौंपकर तपश्चरण करते हुए मरकर यह स्वर्ग गया । महापुराण 59.116-132, 190-191, पद्मपुराण - 5.25-33, 47, हरिवंशपुराण - 27.5-18, 121
(2) विद्याधरों के राजा नमि का वंशज । यह राजा सुवक्त्र का पुत्र और विद्युत्वान् का पिता था । पद्मपुराण - 5.20, हरिवंशपुराण - 13.24
(3) यादवों का पक्षधर एक विद्याधर । हरिवंशपुराण - 51.3
(4) चक्रवर्ती वज्रायुध का पूर्वभव का बैरी । इसने वज्रायुध को नागपाश में बांधकर ऊपर से शिला रख दी थी किंतु वज्रायुध ने शिला के सौ टुकड़े कर दिये तथा नागपाश को निकाल कर फेंक दिया था । पांडवपुराण 5. 32-36
(5) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी का राजा । इसकी रानी अनिलवेगा तथा पुत्र सिंहरथ था । महापुराण 63.241, पांडवपुराण 5.65-66
(6) एक विद्याधर । यह विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी मेघकूट नगर के स्वामी विद्याधर कालसंवर और रानी कांचनमाला का पुत्र था । यह पाँच सौ भाइयों में ज्येष्ठ था । महापुराण 72.54-55, 85 देखें प्रद्युम्न