विश्वनंदी: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ पूर्वभव का जीव । यह जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के मगध देश में स्थित राजगृह-नगर के राजा विश्वभूति और रानी जैनी का पुत्र था । इसके चचेरे भाई विशाखनंदी ने छलपूर्वक इसका नंदन उद्यान ले लिया था । अत: इसने विशाखनंद से युद्ध किया । युद्ध से विशाखनंदी के भाग जाने पर इसे वैराग्य उत्पन्न हो गया । यह विशाखभूति के साथ संभूत गुरु के समीप दीक्षित होकर विहार करते हुए मथुरा आया । वहाँ किसी गाय के मारने से गिर गया । इस पर चचेरे भाई विशाखनंदी ने उपहास किया । यह निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ हुआ । यही आगे तीर्थंकर महावीर हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 57.70-85, 76.538, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 20. 206-209, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-63, </span>देखें [[ महावीर ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ पूर्वभव का जीव । यह जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के मगध देश में स्थित राजगृह-नगर के राजा विश्वभूति और रानी जैनी का पुत्र था । इसके चचेरे भाई विशाखनंदी ने छलपूर्वक इसका नंदन उद्यान ले लिया था । अत: इसने विशाखनंद से युद्ध किया । युद्ध से विशाखनंदी के भाग जाने पर इसे वैराग्य उत्पन्न हो गया । यह विशाखभूति के साथ संभूत गुरु के समीप दीक्षित होकर विहार करते हुए मथुरा आया । वहाँ किसी गाय के मारने से गिर गया । इस पर चचेरे भाई विशाखनंदी ने उपहास किया । यह निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ हुआ । यही आगे तीर्थंकर महावीर हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 57.70-85, 76.538, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#206|पद्मपुराण - 20.206-209]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-63, </span>देखें [[ महावीर ]]</p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ पूर्वभव का जीव । यह जंबूद्वीप में भरतक्षेत्र के मगध देश में स्थित राजगृह-नगर के राजा विश्वभूति और रानी जैनी का पुत्र था । इसके चचेरे भाई विशाखनंदी ने छलपूर्वक इसका नंदन उद्यान ले लिया था । अत: इसने विशाखनंद से युद्ध किया । युद्ध से विशाखनंदी के भाग जाने पर इसे वैराग्य उत्पन्न हो गया । यह विशाखभूति के साथ संभूत गुरु के समीप दीक्षित होकर विहार करते हुए मथुरा आया । वहाँ किसी गाय के मारने से गिर गया । इस पर चचेरे भाई विशाखनंदी ने उपहास किया । यह निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ और वहाँ से चयकर प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ हुआ । यही आगे तीर्थंकर महावीर हुआ । महापुराण 57.70-85, 76.538, पद्मपुराण - 20.206-209, वीरवर्द्धमान चरित्र 3. 61-63, देखें महावीर