चंद्राभ: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(10 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol class="HindiText"> | | ||
<li name="1" id="1"> विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें | == सिद्धांतकोष से == | ||
<li name="2" id="2"> | <ol class="HindiText"> | ||
<li name="3" id="3"> | <li name="1" id="1"> विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें [[ विद्याधर ]]। </li> | ||
<li name="2" id="2">लौकांतिक देवों की एक जाति–देखें [[ लौकांतिक_देव | लौकांतिक देव ]]। </li> | |||
<li name="3" id="3">11वें कुलकर–देखें [[ सोलह_कुलकर_निर्देश#IX.1 | सोलह कुलकर निर्देश IX.1 ]]। </li> | |||
</ol> | </ol> | ||
<noinclude> | |||
[[ | [[ चंद्रानना | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:च]] | [[ चंद्राभा | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: च]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) ग्यारहवें कुलकर । ये अभिचंद्र कुलकर के पुत्र थे । इन्होंने पल्य के दस हजार करोड़ वें भाग तक जीवित रहकर मरुदेव नामक पुत्र को जन्म दिया था तथा एक मास तक उसका लालन-पालन कर स्वर्ग प्राप्त किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_3#87|पद्मपुराण - 3.87]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_7#162|हरिवंशपुराण - 7.162-164]], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 2.106 </span>ये नयुतप्रमितायु छ: सौ धनुष अवगाहना-प्राप्त और उदयकालीन सूर्य के समान दैदीप्यमान थे । चंद्रमा के समान जीवों के आह्लादिक होने से ये सार्थक नामधारी थे । इनके समय में पुत्र के साथ रहने का भी समय मिलने लगा था । <span class="GRef"> महापुराण 3. 134-138 </span></p> | |||
<p id="2" class="HindiText">(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । <span class="GRef"> महापुराण 19.50, 53, 75.390 </span></p> | |||
<p id="3" class="HindiText">(3) रत्नप्रभा नगर के खरभाग का चौदहवाँ पटल । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#54|हरिवंशपुराण - 4.54]] </span>देखें [[ खरभाग ]]</p> | |||
<p id="4" class="HindiText">(4) विजयार्ध पर्वत के द्युतिलक नगर का राजा । यह विद्याधरों का स्वामी, सुभद्रा का पति और वायुवेगा का पिता था । <span class="GRef"> महापुराण 62.36-37,74,134, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 3.73-74 </span></p> | |||
<p id="5" class="HindiText">(5) राम के पक्ष का एक विद्याधर योद्धा । बहुरूपिणी विद्या की साधना मे रत रावण को विचलित करने के उद्देश्य से यह लंका गया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#3|पद्मपुराण - 58.3-7]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_58#70|पद्मपुराण - 58.70]]. 12-16 </span></p> | |||
<p id="6" class="HindiText">(6) वसुदेव के भाई अभिचंद्र का तीसरा पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_48#52|हरिवंशपुराण - 48.52]] </span></p> | |||
<p id="7" class="HindiText">(7) ब्रह्म स्वर्ग का एक विमान । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#117|हरिवंशपुराण - 27.117]] </span></p> | |||
<p id="8" class="HindiText">(8) एक विद्याधर । तापस मृगशृंग ने इसे देखकर ही विद्याधर होने का निदान किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#120|हरिवंशपुराण - 27.120-121]] </span></p> | |||
<p id="9" class="HindiText">(9) रोहिणी के स्वयंवर में आया हुआ एक नृप । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_31#28|हरिवंशपुराण - 31.28]] </span></p> | |||
<p id="10">(10) राजपुर नगर-निवासी धनदत्त बौर नंदिनी का पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण 75.527-529 </span></p> | |||
</div> | |||
<noinclude> | |||
[[ चंद्रानना | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ चंद्राभा | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: च]] | |||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का एक नगर–देखें विद्याधर ।
- लौकांतिक देवों की एक जाति–देखें लौकांतिक देव ।
- 11वें कुलकर–देखें सोलह कुलकर निर्देश IX.1 ।
पुराणकोष से
(1) ग्यारहवें कुलकर । ये अभिचंद्र कुलकर के पुत्र थे । इन्होंने पल्य के दस हजार करोड़ वें भाग तक जीवित रहकर मरुदेव नामक पुत्र को जन्म दिया था तथा एक मास तक उसका लालन-पालन कर स्वर्ग प्राप्त किया था । पद्मपुराण - 3.87, हरिवंशपुराण - 7.162-164, पांडवपुराण 2.106 ये नयुतप्रमितायु छ: सौ धनुष अवगाहना-प्राप्त और उदयकालीन सूर्य के समान दैदीप्यमान थे । चंद्रमा के समान जीवों के आह्लादिक होने से ये सार्थक नामधारी थे । इनके समय में पुत्र के साथ रहने का भी समय मिलने लगा था । महापुराण 3. 134-138
(2) विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी का एक नगर । महापुराण 19.50, 53, 75.390
(3) रत्नप्रभा नगर के खरभाग का चौदहवाँ पटल । हरिवंशपुराण - 4.54 देखें खरभाग
(4) विजयार्ध पर्वत के द्युतिलक नगर का राजा । यह विद्याधरों का स्वामी, सुभद्रा का पति और वायुवेगा का पिता था । महापुराण 62.36-37,74,134, वीरवर्द्धमान चरित्र 3.73-74
(5) राम के पक्ष का एक विद्याधर योद्धा । बहुरूपिणी विद्या की साधना मे रत रावण को विचलित करने के उद्देश्य से यह लंका गया था । पद्मपुराण - 58.3-7,पद्मपुराण - 58.70. 12-16
(6) वसुदेव के भाई अभिचंद्र का तीसरा पुत्र । हरिवंशपुराण - 48.52
(7) ब्रह्म स्वर्ग का एक विमान । हरिवंशपुराण - 27.117
(8) एक विद्याधर । तापस मृगशृंग ने इसे देखकर ही विद्याधर होने का निदान किया था । हरिवंशपुराण - 27.120-121
(9) रोहिणी के स्वयंवर में आया हुआ एक नृप । हरिवंशपुराण - 31.28
(10) राजपुर नगर-निवासी धनदत्त बौर नंदिनी का पुत्र । महापुराण 75.527-529