चारित्राराधना: Difference between revisions
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<span class="GRef">भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 2,3</span> <p class=" PrakritText ">दंसणणाणचरित्तं तवाणमाराहणाभणिया ॥2॥ दुविहापुण जिणवयणे आराहणासमासेण। सम्मत्तम्मि य पढमा विदिया य हवे चरित्तम्मि ॥3॥</p> | |||
<p class="HindiText">= दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार को आराधना कहा गया है ॥2॥ अथवा जिनागम में संक्षेप से आराधना के दो भेद कहे हैं-एक सम्यक्त्वाराधना, दूसरा '''चारित्राराधना'''।</p><br> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ आराधना ]]।</p> | |||
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<div class="HindiText"> <p class="HindiText"> दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप― इन चतुर्विध आराधनाओं में तीसरी आराधना । इसमें पाप कर्मों से निवृत्ति और आत्मा के चैतन्य रूप में प्रवृत्ति होती है । <span class="GRef"> पांडवपुराण 19.263-266 </span></p> | |||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 2,3
दंसणणाणचरित्तं तवाणमाराहणाभणिया ॥2॥ दुविहापुण जिणवयणे आराहणासमासेण। सम्मत्तम्मि य पढमा विदिया य हवे चरित्तम्मि ॥3॥
= दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार को आराधना कहा गया है ॥2॥ अथवा जिनागम में संक्षेप से आराधना के दो भेद कहे हैं-एक सम्यक्त्वाराधना, दूसरा चारित्राराधना।
अधिक जानकारी के लिये देखें आराधना ।
पुराणकोष से
दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप― इन चतुर्विध आराधनाओं में तीसरी आराधना । इसमें पाप कर्मों से निवृत्ति और आत्मा के चैतन्य रूप में प्रवृत्ति होती है । पांडवपुराण 19.263-266