चारित्राचार
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 288,297
पाणिवहमुसावाद अदत्तमेवहुणपरिग्गहाविरदी। एस चरित्ताचारो पंचविहो होदि णादव्वो ॥288॥ पणिधाणजोगजुत्तो पंचमु समिदीसु तीसु गुत्तीसु। एस चरित्ताचारो अट्ठविधो होई णायव्वो ॥297॥
= प्राणियों की हिंसा, झूठ बोलना, चोरी, मैथुन, सेवा, परिग्रह-इनका त्याग करना वह अहिंसा आदि पाँच प्रकारका चारित्रचार जानना ॥288॥ परिणाम के संयोग से; पाँच समिति तीन गुप्तियों मे अकषाय रूप प्रवृत्ति आठ भेद वाला चारित्रचार है।
अधिक जानकारी के लिये देखें आचार ।
पुराणकोष से
तेरह प्रकार के चारित्र का पालन । यह ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और कर्माचार इन पाँच आचारों में तीसरा आचार है । चारित्राचार मे पांच समितियों, पांच महाव्रतों और तीन गुप्तियों रूप पालन आवश्यक होता है । महापुराण 20.173, पांडवपुराण 23. 57