चिंतागति: Difference between revisions
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<span class="GRef">( महापुराण/70/ श्लोक नं.)</span><br> | |||
<div class="HindiText"> पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम मेरु के पास गंधिल नाम के देश में विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी में सूर्यप्रभ नगर के राजा सूर्यप्रभ का पुत्र था।36-28। अजितसेना नामा कन्या द्वारा गतियुद्ध में हरा दिया जाने पर।30-31। दीक्षा धारण कर ली और स्वर्ग में सामानिक देव हुआ।36-37। यह नेमिनाथ भगवान् का पूर्व का सातवाँ भव है। | <div class="HindiText"> पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम मेरु के पास गंधिल नाम के देश में विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी में सूर्यप्रभ नगर के राजा सूर्यप्रभ का पुत्र था।36-28। अजितसेना नामा कन्या द्वारा गतियुद्ध में हरा दिया जाने पर।30-31। दीक्षा धारण कर ली और स्वर्ग में सामानिक देव हुआ।36-37। यह नेमिनाथ भगवान् का पूर्व का सातवाँ भव है। | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) पुष्करार्ध द्वीप में गंधिल देश की विजयार्ध उत्तरश्रेणी में स्थित सूर्यप्रभनगर के राजा सूर्यप्रभ और उनकी रानी धारिणी का ज्येष्ठ पुत्र । यह मनोगति और चपलगति का भाई था । यह नेमिनाथ के सातवें पूर्वभव का जीव था । विजया उत्तरश्रेणी-स्थित अरिंदमपुर नगर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेन की पुत्री प्रीतिमती द्वारा गतियुद्ध में अपने दोनों छोटे भाइयों के हराये जाने पर इसने उसे पराजित किया था । प्रीतिमती ने पहले इसके छोटे भाइयों को प्राप्त करने की इच्छा से उनके साथ गतियुद्ध किया था अत: प्रीतिमती को इसने स्वयं स्वीकार नहीं किया । अपने छोटे भाई को माला पहनाने के लिए कहा । प्रीतिमती ने इसके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया । प्रीतिमती ने इसे ही माला पहिनाना चाही । जब इसने प्रीतिमती को स्वीकार नहीं किया तो वह विवृता नामक आर्यिका के पास दीक्षित हो गयी । प्रीतिमती के संयम धारण कर लेने से विरक्त होकर इसने भी अपने भाइयों के साथ दमवर नामक गुरु के पास संयम धारण कर लिया । आठों शुद्धियों को प्राप्त कर अपने दोनों भाइयों सहित यह सामानिक जाति का देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 70. 26-37, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.15-33 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) पुष्करार्ध द्वीप में गंधिल देश की विजयार्ध उत्तरश्रेणी में स्थित सूर्यप्रभनगर के राजा सूर्यप्रभ और उनकी रानी धारिणी का ज्येष्ठ पुत्र । यह मनोगति और चपलगति का भाई था । यह नेमिनाथ के सातवें पूर्वभव का जीव था । विजया उत्तरश्रेणी-स्थित अरिंदमपुर नगर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेन की पुत्री प्रीतिमती द्वारा गतियुद्ध में अपने दोनों छोटे भाइयों के हराये जाने पर इसने उसे पराजित किया था । प्रीतिमती ने पहले इसके छोटे भाइयों को प्राप्त करने की इच्छा से उनके साथ गतियुद्ध किया था अत: प्रीतिमती को इसने स्वयं स्वीकार नहीं किया । अपने छोटे भाई को माला पहनाने के लिए कहा । प्रीतिमती ने इसके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया । प्रीतिमती ने इसे ही माला पहिनाना चाही । जब इसने प्रीतिमती को स्वीकार नहीं किया तो वह विवृता नामक आर्यिका के पास दीक्षित हो गयी । प्रीतिमती के संयम धारण कर लेने से विरक्त होकर इसने भी अपने भाइयों के साथ दमवर नामक गुरु के पास संयम धारण कर लिया । आठों शुद्धियों को प्राप्त कर अपने दोनों भाइयों सहित यह सामानिक जाति का देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 70. 26-37, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_34#15|हरिवंशपुराण - 34.15-33]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) प्रतिनारायण अश्वग्रीव का दूत । <span class="GRef"> महापुराण 62.124 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) प्रतिनारायण अश्वग्रीव का दूत । <span class="GRef"> महापुराण 62.124 </span></p> | ||
<p id="3">(3) राक्षसवंश का एक विद्यानुयोग में कुशल राजा । इसने भानुगति से राज्य प्राप्त किया था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.393, 400-401 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) राक्षसवंश का एक विद्यानुयोग में कुशल राजा । इसने भानुगति से राज्य प्राप्त किया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#393|पद्मपुराण - 5.393]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#400|पद्मपुराण - 5.400]]-401 </span></p> | ||
<p id="5">(5) महालोचन नामक गरुडेंद्र द्वारा प्रेषित लंका का एक देव । जब रावण के पुत्रों ने सुग्रीव और भामंडल को नागपाश से बांध कर निश्चेष्ट कर दिया था तब राम और लक्ष्मण ने गरुडेंद्र का स्मरण किया । गरुडेंद्र ने इस देव को भेजा और इसके द्वारा राम को सिंहवाहिनी विद्या तथा लक्ष्मण को गरुडवाहिनी विद्या दी गया । सुग्रीव और भामंडल पाश से मुक्त हुए । <span class="GRef"> पद्मपुराण 60. 131-135 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) महालोचन नामक गरुडेंद्र द्वारा प्रेषित लंका का एक देव । जब रावण के पुत्रों ने सुग्रीव और भामंडल को नागपाश से बांध कर निश्चेष्ट कर दिया था तब राम और लक्ष्मण ने गरुडेंद्र का स्मरण किया । गरुडेंद्र ने इस देव को भेजा और इसके द्वारा राम को सिंहवाहिनी विद्या तथा लक्ष्मण को गरुडवाहिनी विद्या दी गया । सुग्रीव और भामंडल पाश से मुक्त हुए । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_60#131|पद्मपुराण - 60.131-135]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) गंधर्वपुर के राजा मंदरमाली और रानी सुंदरी का विद्याधर पुत्र । यह मनोगति का सहोदर तथा चक्रवर्ती वज्रदंत का प्रियमित्र था । वज्रदंत की भार्या लक्ष्मीमती ने संदेश-पत्र देकर अपने जमाता और पुत्री को बुलाने लिए इसे उनके पास भेजा था । <span class="GRef"> महापुराण 8.89-99 </span></p> | <p id="5" class="HindiText">(5) गंधर्वपुर के राजा मंदरमाली और रानी सुंदरी का विद्याधर पुत्र । यह मनोगति का सहोदर तथा चक्रवर्ती वज्रदंत का प्रियमित्र था । वज्रदंत की भार्या लक्ष्मीमती ने संदेश-पत्र देकर अपने जमाता और पुत्री को बुलाने लिए इसे उनके पास भेजा था । <span class="GRef"> महापुराण 8.89-99 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
( महापुराण/70/ श्लोक नं.)
पुराणकोष से
(1) पुष्करार्ध द्वीप में गंधिल देश की विजयार्ध उत्तरश्रेणी में स्थित सूर्यप्रभनगर के राजा सूर्यप्रभ और उनकी रानी धारिणी का ज्येष्ठ पुत्र । यह मनोगति और चपलगति का भाई था । यह नेमिनाथ के सातवें पूर्वभव का जीव था । विजया उत्तरश्रेणी-स्थित अरिंदमपुर नगर के राजा अरिंजय और उसकी रानी अजितसेन की पुत्री प्रीतिमती द्वारा गतियुद्ध में अपने दोनों छोटे भाइयों के हराये जाने पर इसने उसे पराजित किया था । प्रीतिमती ने पहले इसके छोटे भाइयों को प्राप्त करने की इच्छा से उनके साथ गतियुद्ध किया था अत: प्रीतिमती को इसने स्वयं स्वीकार नहीं किया । अपने छोटे भाई को माला पहनाने के लिए कहा । प्रीतिमती ने इसके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया । प्रीतिमती ने इसे ही माला पहिनाना चाही । जब इसने प्रीतिमती को स्वीकार नहीं किया तो वह विवृता नामक आर्यिका के पास दीक्षित हो गयी । प्रीतिमती के संयम धारण कर लेने से विरक्त होकर इसने भी अपने भाइयों के साथ दमवर नामक गुरु के पास संयम धारण कर लिया । आठों शुद्धियों को प्राप्त कर अपने दोनों भाइयों सहित यह सामानिक जाति का देव हुआ । महापुराण 70. 26-37, हरिवंशपुराण - 34.15-33
(2) प्रतिनारायण अश्वग्रीव का दूत । महापुराण 62.124
(3) राक्षसवंश का एक विद्यानुयोग में कुशल राजा । इसने भानुगति से राज्य प्राप्त किया था । पद्मपुराण - 5.393,पद्मपुराण - 5.400-401
(5) महालोचन नामक गरुडेंद्र द्वारा प्रेषित लंका का एक देव । जब रावण के पुत्रों ने सुग्रीव और भामंडल को नागपाश से बांध कर निश्चेष्ट कर दिया था तब राम और लक्ष्मण ने गरुडेंद्र का स्मरण किया । गरुडेंद्र ने इस देव को भेजा और इसके द्वारा राम को सिंहवाहिनी विद्या तथा लक्ष्मण को गरुडवाहिनी विद्या दी गया । सुग्रीव और भामंडल पाश से मुक्त हुए । पद्मपुराण - 60.131-135
(5) गंधर्वपुर के राजा मंदरमाली और रानी सुंदरी का विद्याधर पुत्र । यह मनोगति का सहोदर तथा चक्रवर्ती वज्रदंत का प्रियमित्र था । वज्रदंत की भार्या लक्ष्मीमती ने संदेश-पत्र देकर अपने जमाता और पुत्री को बुलाने लिए इसे उनके पास भेजा था । महापुराण 8.89-99