व्यंतर इंद्र निर्देश: Difference between revisions
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<span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/6/68 </span><span class="PrakritGatha">पडिइंदा सामणिय तणुरक्खा होंति तिण्णि परिसाओ। सत्ताणीय-पइणा अभियोगं ताण पत्तेयं।68। </span>= <span class="HindiText">उन उपरोक्त इंद्रों में से प्रत्येक के प्रतींद्र, सामानिक, तनुरक्ष, तीनों पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक और अभियोग्य इस प्रकार ये 8 परिवार देव होते हैं (और भी देखें [[ ज्योतिषदेव#1.5 | ज्योतिषदेव - 1.5]])।<br /> | <span class="GRef"> तिलोयपण्णत्ति/6/68 </span><span class="PrakritGatha">पडिइंदा सामणिय तणुरक्खा होंति तिण्णि परिसाओ। सत्ताणीय-पइणा अभियोगं ताण पत्तेयं।68। </span>= <span class="HindiText">उन उपरोक्त इंद्रों में से प्रत्येक के प्रतींद्र, सामानिक, तनुरक्ष, तीनों पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक और अभियोग्य इस प्रकार ये 8 परिवार देव होते हैं (और भी देखें [[ ज्योतिषदेव#1.5 | ज्योतिषदेव - 1.5]])।<br /> | ||
देखें [[ व्यंतर#3.1 | व्यंतर - 3.1 ]](प्रत्येक इंद्र के चार-चार देवियाँ और दो-दो महत्तरिकाएँ होती हैं। ) <br /> | देखें [[ व्यंतर#3.1 | व्यंतर - 3.1 ]](प्रत्येक इंद्र के चार-चार देवियाँ और दो-दो महत्तरिकाएँ होती हैं। ) <br /> | ||
प्रत्येक इंद्र के अन्य परिवार देवों का प्रमाण– <br /> | प्रत्येक इंद्र के अन्य परिवार देवों का प्रमाण– <br /> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
- व्यंतर इंद्र निर्देश
- व्यंतरों के इंद्रों के नाम व संख्या
तिलोयपण्णत्ति/6/11 . ताणं किंपुरुसा किंणरा दवे इंदा।35। इय किपुरिसाणिंदा सप्पुरुसो ताण सह महापुरिसो।37। महोरगया महाकाओ अतिकाओ इंदा।39। गंधव्वा। 40। गीदरदी गीदरसा इंदा।41। ताणं वे माणिपुण्णभद्दिंदा।43। रक्खसइंदा भीमो महाभीमो।45। भूदिंदा सरूवो पडिरूवो।47। पिसाचइंदा य कालमहाकाला।49। सोलस मोम्हिंदाणं किंणरपहुदीण होंति।50। पढमुच्चारिदणासा दक्खिणइंदा हवंति एदेसुं। चरिद उच्चारिदणामा उत्तरइंदा पभावजुदा।59। ( त्रिलोकसार 273-274 )।
- व्यंतरों के इंद्रों के नाम व संख्या
देव का नाम |
दक्षिणेंद्र |
उत्तरेंद्र |
किन्नर |
किंपुरुष |
किन्नर |
किंपुरुष |
सत्पुरुष |
महापुरुष |
महोरग |
महाकाय |
अतिकाय |
गंधर्व |
गीतरति |
गीतरस |
यक्ष |
मणिभद्र |
पूर्णभद्र |
राक्षस |
भीम |
महाभीम |
भूत |
स्वरूप |
प्रतिरूप |
पिशाच |
काल |
महाकाल |
इस प्रकार किन्नर आदि सोलह व्यंतर इंद्र हैं।50।
- व्यंतरेंद्रों का परिवार
तिलोयपण्णत्ति/6/68 पडिइंदा सामणिय तणुरक्खा होंति तिण्णि परिसाओ। सत्ताणीय-पइणा अभियोगं ताण पत्तेयं।68। = उन उपरोक्त इंद्रों में से प्रत्येक के प्रतींद्र, सामानिक, तनुरक्ष, तीनों पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक और अभियोग्य इस प्रकार ये 8 परिवार देव होते हैं (और भी देखें ज्योतिषदेव - 1.5)।
देखें व्यंतर - 3.1 (प्रत्येक इंद्र के चार-चार देवियाँ और दो-दो महत्तरिकाएँ होती हैं। )
प्रत्येक इंद्र के अन्य परिवार देवों का प्रमाण–
( तिलोयपण्णत्ति/6/69-76 ); ( त्रिलोकसार/279-282 )।
नं. |
परिवार देव का नाम |
गणना |
1 |
प्रतींद्र |
1 |
2 |
सामानिक |
4000 |
3 |
आत्मरक्ष |
16000 |
4 |
अभ्यंतर पारि. |
8000 |
5 |
मध्य पारि. |
10,000 |
6 |
बाह्य पारि. |
12,000 |
7 |
अनीक |
7 |
8 |
प्रत्येक अनीक की प्रथम कक्षा |
28000 |
9 |
द्वि आदि कक्षा |
दूनी दूनी |
10 |
हाथी (कुल) |
3556000 |
11 |
सातों अनीक |
24892000 |
12 |
प्रकीर्णक |
असंख्य |
|
आभियोग्य व किल्पिष |
असंख्य ( त्रिलोकसार ) |