ऋजुमति: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) चारण ऋद्धिधारी एक मुनि । इन्होंने प्रीतिंकर सेठ को गृहस्थ और मुनिधर्म का स्वरूप समझाया था । <span class="GRef"> महापुराण 76. 350-354 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) चारण ऋद्धिधारी एक मुनि । इन्होंने प्रीतिंकर सेठ को गृहस्थ और मुनिधर्म का स्वरूप समझाया था । <span class="GRef"> महापुराण 76. 350-354 </span></p> | ||
<p id="2">(2) मन:पर्ययज्ञान का पहला भेद । यह अवधिज्ञान की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म पदार्थ को जानता है । अवधिज्ञान यदि परमाणु को जानता है तो यह उसके अनंतवें भाग को जान लेता है । गौतम गणधर ऋजुमति और विपुलमति दोनों प्रकार के मन:पर्ययज्ञान के धारक थे । <span class="GRef"> महापुराण 2.68, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10. 153 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) मन:पर्ययज्ञान का पहला भेद । यह अवधिज्ञान की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म पदार्थ को जानता है । अवधिज्ञान यदि परमाणु को जानता है तो यह उसके अनंतवें भाग को जान लेता है । गौतम गणधर ऋजुमति और विपुलमति दोनों प्रकार के मन:पर्ययज्ञान के धारक थे । <span class="GRef"> महापुराण 2.68, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#153|हरिवंशपुराण - 10.153]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) सात नयों में चौथा पर्यायार्थिक नय । यह पदार्थ के विशिष्ट स्वरूप को बताता है । यह नय पदार्थ की भूत-भविष्यत् रूप वक्रपर्याय को छोड़कर वर्तमान रूप सरल पर्याय को ही ग्रहण करता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.41-42, 46 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) सात नयों में चौथा पर्यायार्थिक नय । यह पदार्थ के विशिष्ट स्वरूप को बताता है । यह नय पदार्थ की भूत-भविष्यत् रूप वक्रपर्याय को छोड़कर वर्तमान रूप सरल पर्याय को ही ग्रहण करता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#41|हरिवंशपुराण - 58.41-42]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#46|हरिवंशपुराण - 58.46]] </span></p> | ||
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सिद्धांतकोष से
महाबंध 1/2/24/4 यं तं उजुमदिणाणं तं तिविधं-उज्जुगं मणोगदं जाणदि। उज्जुगं वचिंगदं जाणदि। उज्जुगं कायगदं जाणदि। = जो ऋजुमति ज्ञान है, वह तीन प्रकार का है। वह सरल मनोगत पदार्थ को जानता है, सरल वचनगत पदार्थ को जानता है, सरल कायगत पदार्थ को जानता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें मन:पर्यय 2.1।
पुराणकोष से
(1) चारण ऋद्धिधारी एक मुनि । इन्होंने प्रीतिंकर सेठ को गृहस्थ और मुनिधर्म का स्वरूप समझाया था । महापुराण 76. 350-354
(2) मन:पर्ययज्ञान का पहला भेद । यह अवधिज्ञान की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म पदार्थ को जानता है । अवधिज्ञान यदि परमाणु को जानता है तो यह उसके अनंतवें भाग को जान लेता है । गौतम गणधर ऋजुमति और विपुलमति दोनों प्रकार के मन:पर्ययज्ञान के धारक थे । महापुराण 2.68, हरिवंशपुराण - 10.153
(3) सात नयों में चौथा पर्यायार्थिक नय । यह पदार्थ के विशिष्ट स्वरूप को बताता है । यह नय पदार्थ की भूत-भविष्यत् रूप वक्रपर्याय को छोड़कर वर्तमान रूप सरल पर्याय को ही ग्रहण करता है । हरिवंशपुराण - 58.41-42,हरिवंशपुराण - 58.46