ऊर्णनाथ: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> लोक के तीन भेदों में एक भेद । यह मृदंग के आकार का है । वैमानिक देव यहीं रहते हैं । यह मध्य लोक के ऊपर स्थित है । यहाँ कल्प तथा कल्पातीत विमानों के त्रेसठ पटल हैं और चौरासी लाख सत्तान्नवें हजार तेईस विमान हैं । यहाँ वे जीव जन्मते हैं जो रत्नत्रय धर्म के धारक अर्हंत और निर्ग्रंथ गुरुओं के भक्त और जितेंद्रिय तथा सदाचारी होते हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_105#166|पद्मपुराण - 105.166]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#6|हरिवंशपुराण - 4.6]] </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 104-108 </span>चित्रा पृथिवी से डेढ़ रज्जु की ऊँचाई पर जहाँ दूसरा ऐशान स्वर्ग समाप्त होता है यहाँ इस लोक का विस्तार दो रज्जु पूर्ण और एक रज्जु के सात भागों में से पाँच भाग प्रमाण है । उसके ऊपर डेढ़ रज्जु और आगे जहाँ माहेंद्र स्वर्ग समाप्त होता है वहाँ इस लोक का विस्तार चार रज्जु और एक रज्जु के सात भागों में से तीन भाग प्रमाण है । इसके आगे आधी रज्जु और चलने पर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग समाप्त होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार पाँच रज्जु है । उसके ऊपर आधी रज्जु और चलने पर कापिष्ठ स्वर्ग समाप्त होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार चार रज्जु और एक रज्जु के सात भागों मे से तीन भाग प्रमाण है । उसके आगे आधी रज्जु और चलने पर महाशुक्र स्वर्ग समाप्त होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार तीन रज्जु और एक रज्जु के सात भागों में से छ: भाग प्रमाण है । इसके ऊपर आधी रज्जु और चलने पर सहस्रार स्वर्ग का अंत आता है । वहाँ इस लोक का विस्तार तीन रज्जु और एक रज्जु के सात मार्गों मे से पाँच भाग प्रमाण है । इसके ऊपर आधी रज्जु और आगे अच्छत स्वर्ग समाज होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार दो रज्जु और एक रज्जु के सात भागों में से एक भाग प्रमाण है । इसके आगे जहाँ इस लोक का अंत होता है वहाँ इसका विस्तार एक रज्जु प्रमाण हैं । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#21|हरिवंशपुराण - 4.21-28]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:40, 27 November 2023
लोक के तीन भेदों में एक भेद । यह मृदंग के आकार का है । वैमानिक देव यहीं रहते हैं । यह मध्य लोक के ऊपर स्थित है । यहाँ कल्प तथा कल्पातीत विमानों के त्रेसठ पटल हैं और चौरासी लाख सत्तान्नवें हजार तेईस विमान हैं । यहाँ वे जीव जन्मते हैं जो रत्नत्रय धर्म के धारक अर्हंत और निर्ग्रंथ गुरुओं के भक्त और जितेंद्रिय तथा सदाचारी होते हैं । पद्मपुराण - 105.166, हरिवंशपुराण - 4.6 वीरवर्द्धमान चरित्र 11. 104-108 चित्रा पृथिवी से डेढ़ रज्जु की ऊँचाई पर जहाँ दूसरा ऐशान स्वर्ग समाप्त होता है यहाँ इस लोक का विस्तार दो रज्जु पूर्ण और एक रज्जु के सात भागों में से पाँच भाग प्रमाण है । उसके ऊपर डेढ़ रज्जु और आगे जहाँ माहेंद्र स्वर्ग समाप्त होता है वहाँ इस लोक का विस्तार चार रज्जु और एक रज्जु के सात भागों में से तीन भाग प्रमाण है । इसके आगे आधी रज्जु और चलने पर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग समाप्त होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार पाँच रज्जु है । उसके ऊपर आधी रज्जु और चलने पर कापिष्ठ स्वर्ग समाप्त होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार चार रज्जु और एक रज्जु के सात भागों मे से तीन भाग प्रमाण है । उसके आगे आधी रज्जु और चलने पर महाशुक्र स्वर्ग समाप्त होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार तीन रज्जु और एक रज्जु के सात भागों में से छ: भाग प्रमाण है । इसके ऊपर आधी रज्जु और चलने पर सहस्रार स्वर्ग का अंत आता है । वहाँ इस लोक का विस्तार तीन रज्जु और एक रज्जु के सात मार्गों मे से पाँच भाग प्रमाण है । इसके ऊपर आधी रज्जु और आगे अच्छत स्वर्ग समाज होता है । वहाँ इस लोक का विस्तार दो रज्जु और एक रज्जु के सात भागों में से एक भाग प्रमाण है । इसके आगे जहाँ इस लोक का अंत होता है वहाँ इसका विस्तार एक रज्जु प्रमाण हैं । हरिवंशपुराण - 4.21-28