प्रतिमायोग: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> कायोत्सर्ग मुद्रा । इसमें प्रतिमा के समान नग्न खड़े होकर ध्यान किया जाता है । यह अधातिया कर्मों की घातिनी योगावस्था है । ध्यान की इस मुद्रा का आरंभ वृषभदेव ने किया था । <span class="GRef"> महापुराण 18.90, 39.52, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#107|पद्मपुराण - 9.107-108]], 127, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9. 135, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.221 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> कायोत्सर्ग मुद्रा । इसमें प्रतिमा के समान नग्न खड़े होकर ध्यान किया जाता है । यह अधातिया कर्मों की घातिनी योगावस्था है । ध्यान की इस मुद्रा का आरंभ वृषभदेव ने किया था । <span class="GRef"> महापुराण 18.90, 39.52, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_9#107|पद्मपुराण - 9.107-108]], 127, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_9#135|हरिवंशपुराण - 9.135]], </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 19.221 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:15, 27 November 2023
कायोत्सर्ग मुद्रा । इसमें प्रतिमा के समान नग्न खड़े होकर ध्यान किया जाता है । यह अधातिया कर्मों की घातिनी योगावस्था है । ध्यान की इस मुद्रा का आरंभ वृषभदेव ने किया था । महापुराण 18.90, 39.52, पद्मपुराण - 9.107-108, 127, हरिवंशपुराण - 9.135, वीरवर्द्धमान चरित्र 19.221