संरंभ: Difference between revisions
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> जीवाधिकरण आस्रव के तीन भेदो में एक भेद । कार्य करने का संकल्प करना संरंभ कहलाता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.84-85 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> जीवाधिकरण आस्रव के तीन भेदो में एक भेद । कार्य करने का संकल्प करना संरंभ कहलाता है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#84|हरिवंशपुराण - 58.84-85]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 16:36, 17 February 2024
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि/6/8/325/3 प्राणव्यपरोपणादिषु प्रमादवत: प्रयत्नावेश: संरंभ:। =प्रमादी जीवों का प्राणी हिंसा आदि कार्य में प्रयत्नशील होना संरंभ है। ( राजवार्तिक/6/8/2/513/32 ); ( चारित्रसार/87/4 )।
पुराणकोष से
जीवाधिकरण आस्रव के तीन भेदो में एक भेद । कार्य करने का संकल्प करना संरंभ कहलाता है । हरिवंशपुराण - 58.84-85