सोमदत्त: Difference between revisions
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<div class="HindiText">इन्होंने जिनदत्त सेठ से आकाशगामिनी विद्या को सिद्ध करने का उपाय प्राप्त किया। परंतु अस्थिर चित्त के कारण सिद्ध न कर सके। फिर उसको विद्युच्चर चोर ने सिद्ध किया। (वृहद् कथा कोश। कथा 4)।</span></p> | <div class="HindiText">इन्होंने जिनदत्त सेठ से आकाशगामिनी विद्या को सिद्ध करने का उपाय प्राप्त किया। परंतु अस्थिर चित्त के कारण सिद्ध न कर सके। फिर उसको विद्युच्चर चोर ने सिद्ध किया। (<span class="GRef">वृहद् कथा कोश। कथा 4</span>)।</span></p> | ||
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Latest revision as of 11:11, 26 February 2024
सिद्धांतकोष से
इन्होंने जिनदत्त सेठ से आकाशगामिनी विद्या को सिद्ध करने का उपाय प्राप्त किया। परंतु अस्थिर चित्त के कारण सिद्ध न कर सके। फिर उसको विद्युच्चर चोर ने सिद्ध किया। (वृहद् कथा कोश। कथा 4)।
पुराणकोष से
(1) महापुर नगर का राजा । यह रोहिणी के स्वयंवर में आया था । इसकी रानी पूर्णचंद्रा, भूरिश्रवा पुत्र और सोमश्री पुत्री थी जिसका विवाह वसुदेव से हुआ था । हरिवंशपुराण - 24.37-31,हरिवंशपुराण - 24.50-52, 59 31. 29
(2) यादवों क पक्षधर एक अर्धरथ राजा । हरिवंशपुराण - 50.84-85
(3) तीर्थंकर वृषभदेव के आठवें गणधर । हरिवंशपुराण - 12.56
(4) भरतक्षेत्र की चंपा नगरी के ब्राह्मण सोमदेव और उसकी स्त्री सीमिला का ज्येष्ठ पुत्र । सोमिल और सोमभूति इसके छोटे भाई थे । इसने अपने मामा की पुत्री धनश्री को तथा सोमिल ने मित्रश्री को विवाहा था । अंत में यह और इसके दोनों भाई वरुण मुनि से दीक्षित हो गये थे । इसकी और इसके भाई सोमिल की पत्नी आर्यिकाएँ हो गयी थी । आयु के अंत में मरकर ये पाँचों स्वर्ग में सामानिक देव हुए । स्वर्ग से चयकर यह युधिष्ठिर और इसके छोटे दोनों भाई भीम और अर्जुन हुए और दोनों पत्नियों के जीव नकुल एवं सहदेव हुए । महापुराण 72.228-237, 261, 262, हरिवंशपुराण - 64.4-6, 9-13, 136-137, पांडवपुराण 24.75
(5) वर्धमान नगर का राजा । इसने तीर्थंकर पद्मप्रभ को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 52.53-54
(6) भरतक्षेत्र के नलिन नगर का राजा । इसने तीर्थंकर चंद्रप्रभ को नवधा भक्ति से आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । महापुराण 54.217-218