विष्णु: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) महावीर-निर्वाण के बासठ वर्ष पश्चात् हुए पाँच आचार्यों में प्रथम आचार्य ये श्रुतकेवली थे । <span class="GRef"> महापुराण 2.140-141 </span>। <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_1#61|हरिवंशपुराण - 1.61]] </span></p> | |||
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<p id="6" class="HindiText">(6) हस्तिनापुर के राजा महापद्म (नवें चक्रवर्ती) का दूसरा पुत्र । यह अपने पिता के साथ दीक्षित हुआ । तप के प्रभाव से इसे विक्रियाऋद्धि प्राप्त हुई । (लोक में यही मुनि विष्णुकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ) । इसके भाई पद्म के मंत्री बलि के द्वारा अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों पर उपसर्ग किये जाने पर इसने दो पद में विक्रियाऋद्धि से समस्त पृथिवी नाप कर उपसर्ग दूर किया था । तप द्वारा वह घातियाकर्मों का क्षय करके केवली हुआ और देह त्याग करके मुक्ति प्राप्त की । <span class="GRef"> महापुराण 70.282-300, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_20#179|पद्मपुराण - 20.179-183]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_20#15|हरिवंशपुराण - 20.15-63]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#24|हरिवंशपुराण - 45.24], </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.57-72 </span>देखें [[ अकंपनाचार्य ]], पुष्पदंत और बलि</p> | |||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
तिलोयपण्णत्ति/4/518 तह य तिविट्ठदुविट्ठा सयंभु पुरिसुत्तमो पुरिससोहो। पुंडरीयदत्तणारायणा य किण्हो हुवंति णव विण्हू।518। = त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुंडरीक, दत्त, नारायण और कृष्ण ये नौ विष्णु(नारायण) हैं।518।–(विशेष देखें शलाका पुरुष - 4)।
देखें जीव - 1.3.6–(प्राप्त हुए शरीर को व्याप्त करने के कारण जीव को विष्णु कहते हैं।)
द्रव्यसंग्रह/टीका/14/47/3 सकलविमलकेवलज्ञानेन येन कारणेन समस्तं लोकालोकं जानाति व्याप्तो तेन कारणेन विष्णुर्भण्यते। = क्योंकि पूर्ण निर्मल केवलज्ञान द्वारा लोक-अलोक में व्याप्त होता है, इस कारण वह परमात्मा विष्णु कहा जाता है।
- परम विष्णु के अपर नाम–देखें मोक्षमार्ग - 2.5।
पुराणकोष से
(1) महावीर-निर्वाण के बासठ वर्ष पश्चात् हुए पाँच आचार्यों में प्रथम आचार्य ये श्रुतकेवली थे । महापुराण 2.140-141 । हरिवंशपुराण - 1.61
(2) कृष्ण का एक नाम । महापुराण 72.181, हरिवंशपुराण - 47.17 पांडवपुराण 2.95
(3) कृष्ण के कुल का रक्षक एक नृप । हरिवंशपुराण - 50.130
(4) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित सिंहपुर नगर का राजा । यह इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न हुआ था । नंदा इसकी रानी और तीर्थंकर श्रेयांसनाथ इसके पुत्र थे । महापुराण 57. 17-18, 33, पद्मपुराण - 20.47
(5) भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.35
(6) हस्तिनापुर के राजा महापद्म (नवें चक्रवर्ती) का दूसरा पुत्र । यह अपने पिता के साथ दीक्षित हुआ । तप के प्रभाव से इसे विक्रियाऋद्धि प्राप्त हुई । (लोक में यही मुनि विष्णुकुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ) । इसके भाई पद्म के मंत्री बलि के द्वारा अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों पर उपसर्ग किये जाने पर इसने दो पद में विक्रियाऋद्धि से समस्त पृथिवी नाप कर उपसर्ग दूर किया था । तप द्वारा वह घातियाकर्मों का क्षय करके केवली हुआ और देह त्याग करके मुक्ति प्राप्त की । महापुराण 70.282-300, पद्मपुराण - 20.179-183, हरिवंशपुराण - 20.15-63,[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#24|हरिवंशपुराण - 45.24], पांडवपुराण 7.57-72 देखें अकंपनाचार्य , पुष्पदंत और बलि