विस्तारासंख्यात: Difference between revisions
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Latest revision as of 14:27, 31 January 2023
धवला पुस्तक 3/1,2,15/125/7 जं तं वित्थारासंखेज्जं तं लोगागासपदरं, लोगपदरागारपदेसगणणं पडुच्च संखाभावादो।= प्रतर रूप लोकाकाश विस्तारासंख्यात है, क्योंकि, प्रतररूप लोकाकाश के प्रदेशों की गणना की अपेक्षा वे संख्यातीत हैं।
देखें असंख्यात ।