प्रवचनार्थ: Difference between revisions
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<p> | <p><span class="GRef"> धवला 13/5,5,50/281/12 </span><span class="SanskritText">द्वादशांगवर्णकलापो वचनम् अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते इति अर्थो नव पदार्थाः वचनं च अर्थश्च वचनार्थौ, प्रकृष्टौ निरवद्योवचनार्थौ यस्मिन्नागमे स प्रवचनार्थः । .... अथवा, प्रकृष्टवचनैरर्य्यते गम्यते परिच्छिद्यते इति वचनार्थो द्वादशांगभावश्रुतम् । सकलसंयोगाक्षरैर्विशिष्टवचनरचनारचितैर्बह्वर्थैविशिष्टोपादानकारणै र्विशिष्टाचार्यसहायैः द्वादशांगमुत्पाद्यत इति यावत् ।</span> =</p> | ||
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<li class="HindiText"> द्वादशांगरूप वर्णों का समुदाय वचन है, जो ‘अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते’ | <li class="HindiText"> द्वादशांगरूप वर्णों का समुदाय वचन है, जो ‘अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते’ अर्थात् जाना जाता है वह अर्थ है । यहाँ अर्थ पद से नौ पदार्थ लिये गये हैं । वचन और अर्थ ये दोनों मिलकर वचनार्थ कहलाते हैं । जिस आगम में वचन और अर्थ ये दोनों प्रकृष्ट अर्थात् निर्दोष हैं उस आगम की प्रवचनार्थ संज्ञा है । </li> | ||
<li class="HindiText"> .... अथवा, प्रकृष्ट वचनों के द्वारा जो ‘अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते’ | <li class="HindiText"> .... अथवा, प्रकृष्ट वचनों के द्वारा जो ‘अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते’ अर्थात् जाना जाता है वह प्रवचनार्थ अर्थात् द्वादशांग भावश्रुत है । जो विशिष्ट रचना से आरचित हैं, बहुत अर्थवाले हैं, विशिष्ट उपादान कारणों से सहित हैं, और जिनको हृदयंगम करने में विशिष्ट आचार्यों की सहायता लगती है, ऐसे सकल संयोगी अक्षरों से द्वादशांग उत्पन्न किया जाता है । यह कथन का तात्पर्य है ।</li> | ||
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Latest revision as of 11:52, 24 August 2022
धवला 13/5,5,50/281/12 द्वादशांगवर्णकलापो वचनम् अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते इति अर्थो नव पदार्थाः वचनं च अर्थश्च वचनार्थौ, प्रकृष्टौ निरवद्योवचनार्थौ यस्मिन्नागमे स प्रवचनार्थः । .... अथवा, प्रकृष्टवचनैरर्य्यते गम्यते परिच्छिद्यते इति वचनार्थो द्वादशांगभावश्रुतम् । सकलसंयोगाक्षरैर्विशिष्टवचनरचनारचितैर्बह्वर्थैविशिष्टोपादानकारणै र्विशिष्टाचार्यसहायैः द्वादशांगमुत्पाद्यत इति यावत् । =
- द्वादशांगरूप वर्णों का समुदाय वचन है, जो ‘अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते’ अर्थात् जाना जाता है वह अर्थ है । यहाँ अर्थ पद से नौ पदार्थ लिये गये हैं । वचन और अर्थ ये दोनों मिलकर वचनार्थ कहलाते हैं । जिस आगम में वचन और अर्थ ये दोनों प्रकृष्ट अर्थात् निर्दोष हैं उस आगम की प्रवचनार्थ संज्ञा है ।
- .... अथवा, प्रकृष्ट वचनों के द्वारा जो ‘अर्यते गम्यते परिच्छिद्यते’ अर्थात् जाना जाता है वह प्रवचनार्थ अर्थात् द्वादशांग भावश्रुत है । जो विशिष्ट रचना से आरचित हैं, बहुत अर्थवाले हैं, विशिष्ट उपादान कारणों से सहित हैं, और जिनको हृदयंगम करने में विशिष्ट आचार्यों की सहायता लगती है, ऐसे सकल संयोगी अक्षरों से द्वादशांग उत्पन्न किया जाता है । यह कथन का तात्पर्य है ।