स्वोपकार: Difference between revisions
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<span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 7/38/372/13</span><p class="SanskritText"> स्वपरोपकारऽनुग्रहः।....स्वोपकारः पुण्यसंचयः परोपकारः सम्यग्ज्ञानादिवृद्धिः।</p><p class="HindiText">= '''स्वयं''' अपना अथवा दूसरे का उपकार करना अनुग्रह है। दान देने से जो पुण्य का संचय होता है वह अपना उपकार है (क्योंकि उसका फल भोग स्वयं को प्राप्त होता है); तथा जिन्हें दान दिया जाता है उनके सम्यग्ज्ञानादि की वृद्धि होती है, यह पर का उपकार है (क्योंकि इसका फल दूसरे को प्राप्त होता है)।</p><br> | |||
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सर्वार्थसिद्धि अध्याय 7/38/372/13
स्वपरोपकारऽनुग्रहः।....स्वोपकारः पुण्यसंचयः परोपकारः सम्यग्ज्ञानादिवृद्धिः।
= स्वयं अपना अथवा दूसरे का उपकार करना अनुग्रह है। दान देने से जो पुण्य का संचय होता है वह अपना उपकार है (क्योंकि उसका फल भोग स्वयं को प्राप्त होता है); तथा जिन्हें दान दिया जाता है उनके सम्यग्ज्ञानादि की वृद्धि होती है, यह पर का उपकार है (क्योंकि इसका फल दूसरे को प्राप्त होता है)।
अधिक जानकारी के लिये देखें उपकार ।