अविकृतिकरण: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(4 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef">नियमसार / मूल या टीका गाथा 208</span> <p class="PrakritText">आलोयणमालंच्छणवियडीकरणं च भावसुद्धी य। चउविहमिह परिकहियं आलोयण लक्खणं समए ॥208॥</p> | |||
<p class="HindiText">= आलोचना का स्वरूप आलोचन, आलुंच्छन, '''अविकृतिकरण''' और भावशुद्धि ऐसे चार प्रकार शास्त्र में कहा है।</p> | |||
<p class="HindiText">आलोचना का एक दोष - देखें [[ आलोचना#2 | आलोचना - 2]]।</p> | |||
<noinclude> | |||
[[ अविकल्प | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ अविचार | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: अ]] | |||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 13:36, 28 December 2022
नियमसार / मूल या टीका गाथा 208
आलोयणमालंच्छणवियडीकरणं च भावसुद्धी य। चउविहमिह परिकहियं आलोयण लक्खणं समए ॥208॥
= आलोचना का स्वरूप आलोचन, आलुंच्छन, अविकृतिकरण और भावशुद्धि ऐसे चार प्रकार शास्त्र में कहा है।
आलोचना का एक दोष - देखें आलोचना - 2।