अजितंजय: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) तीर्थंकर महावीर का प्रमुख | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) तीर्थंकर महावीर का प्रमुख प्रश्नकर्त्ता । <span class="GRef"> महापुराण 76. 532-533 </span></p> | ||
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<p id="3">(3) कंस का एक धनुष । इस धनुष को चढ़ाने वाले को कंस के ज्योतिषी ने उसका बैरी बताया था । हरिवंशपुराण 35.71-77</p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कंस का एक धनुष । इस धनुष को चढ़ाने वाले को कंस के ज्योतिषी ने उसका बैरी बताया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_35#71|हरिवंशपुराण - 35.71-77]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) भरत चक्रवर्ती का | <p id="4" class="HindiText">(4) भरत चक्रवर्ती का दिव्यास्त्रों से युक्त, स्थल और जल पर समान रूप से गतिशील, दिव्याश्ववाही, चक्रचिह्नांकित ध्वजाधारी, दिव्य सारथी द्वारा चालित, हरितवर्ण का एक रथ । अपरनाम अजितंजित । <span class="GRef"> महापुराण 28.56-59, 37.160, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_11#4|हरिवंशपुराण - 11.4]] </span></p> | ||
<p id="5">(5) अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा और उसकी रानी सुप्रभा का चक्रवर्ती पुत्र, अपरनाम पिहितास्रव । इसने बीस हजार राजाओं के साथ | <p id="5" class="HindiText">(5) अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा और उसकी रानी सुप्रभा का चक्रवर्ती पुत्र, अपरनाम पिहितास्रव । इसने बीस हजार राजाओं के साथ मंदिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षा ली थी तथा अवधिज्ञान और चारणऋद्धि प्राप्त को थी । <span class="GRef"> महापुराण 7.41 -52 </span></p> | ||
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<p id="8">(8) भरत चक्रवर्ती का पुत्र । यह जयकुमार के साथ दीक्षित हो गया था । महापुराण 47.281-283</p> | <p id="8" class="HindiText">(8) भरत चक्रवर्ती का पुत्र । यह जयकुमार के साथ दीक्षित हो गया था । <span class="GRef"> महापुराण 47.281-283 </span></p> | ||
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<p id="10">(10) गांधार देश के सांधार नगर का राजा । इसकी अजिता नाम की रानी और ऐरा नाम की पुत्री थी । महापुराण 63.384-385 </p> | <p id="10">(10) गांधार देश के सांधार नगर का राजा । इसकी अजिता नाम की रानी और ऐरा नाम की पुत्री थी । <span class="GRef"> महापुराण 63.384-385 </span></p> | ||
<p id="11">(11) सिंह पर्याय में महावीर के धर्मोपदेशों चारण-ऋद्धिधारी मुनि । ये अमितगुण नामक मुनि के सहगामी थे । महावीर के जीव ने सिंह पर्याय में इनके सदुपदेश से प्रभावित होकर श्रावक के व्रत धारण किये थे तथा अनशन पूर्वक व्रतों का निर्वाह करते हुए मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नामक देव हुआ था । महापुराण 74.171-113, | <p id="11">(11) सिंह पर्याय में महावीर के धर्मोपदेशों चारण-ऋद्धिधारी मुनि । ये अमितगुण नामक मुनि के सहगामी थे । महावीर के जीव ने सिंह पर्याय में इनके सदुपदेश से प्रभावित होकर श्रावक के व्रत धारण किये थे तथा अनशन पूर्वक व्रतों का निर्वाह करते हुए मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नामक देव हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 74.171-113, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 4.2-59 </span></p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
हरिवंशपुराण - 60.492 त्रिलोकसार गाथा 855-856 आगम में इस राजा को धर्म का संस्थापक माना गया है। जबकि कल्कि के अत्याचारों से धर्म व साधु संघ प्रायः नष्ट हो चुका था तब कल्कि का पुत्र अजितंजय मगध देश का राजा हुआ था जिसने अत्याचारों से संतप्त प्रजा को सांत्वना देकर पुनः संघ व धर्म की वृद्धि की थी। समय वीर निर्वाण सम्वत् 1040; ई. 514।
पुराणकोष से
(1) तीर्थंकर महावीर का प्रमुख प्रश्नकर्त्ता । महापुराण 76. 532-533
(2) महावीर-निर्वाण के सात सौ सत्ताईस वर्ष पश्चात् हुआ इंद्रपुर नगर का एक राजा । हरिवंशपुराण - 60.487-492
(3) कंस का एक धनुष । इस धनुष को चढ़ाने वाले को कंस के ज्योतिषी ने उसका बैरी बताया था । हरिवंशपुराण - 35.71-77
(4) भरत चक्रवर्ती का दिव्यास्त्रों से युक्त, स्थल और जल पर समान रूप से गतिशील, दिव्याश्ववाही, चक्रचिह्नांकित ध्वजाधारी, दिव्य सारथी द्वारा चालित, हरितवर्ण का एक रथ । अपरनाम अजितंजित । महापुराण 28.56-59, 37.160, हरिवंशपुराण - 11.4
(5) अयोध्या नगरी के राजा जयवर्मा और उसकी रानी सुप्रभा का चक्रवर्ती पुत्र, अपरनाम पिहितास्रव । इसने बीस हजार राजाओं के साथ मंदिरस्थविर नामक मुनिराज से दीक्षा ली थी तथा अवधिज्ञान और चारणऋद्धि प्राप्त को थी । महापुराण 7.41 -52
(6) सुसीमा नगर का स्वामी । महापुराण 7.61-62
(7) पुष्करार्द्ध द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में स्थित मंगलावती देश के रत्नसंचयपुर नगर का राजा । वसुमती इसकी रानी और युगंधर इसका पुत्र था । महापुराण7.89-91
(8) भरत चक्रवर्ती का पुत्र । यह जयकुमार के साथ दीक्षित हो गया था । महापुराण 47.281-283
(9) घातकीखंड द्वीप के भरत क्षेत्र के अलका देश की अयोध्या नगरी का राजा । इसकी अजितसेना नाम की रानी और अजितसेन नाम का पुत्र था । विरक्त होकर इसने अपने पुत्र को राज्य दे दिया । फिर स्वयंप्रभा तीर्थेश से अशोक न में दीक्षित होकर यह केवली हुआ । महापुराण 54.87,92-95
(10) गांधार देश के सांधार नगर का राजा । इसकी अजिता नाम की रानी और ऐरा नाम की पुत्री थी । महापुराण 63.384-385
(11) सिंह पर्याय में महावीर के धर्मोपदेशों चारण-ऋद्धिधारी मुनि । ये अमितगुण नामक मुनि के सहगामी थे । महावीर के जीव ने सिंह पर्याय में इनके सदुपदेश से प्रभावित होकर श्रावक के व्रत धारण किये थे तथा अनशन पूर्वक व्रतों का निर्वाह करते हुए मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में सिंहकेतु नामक देव हुआ था । महापुराण 74.171-113, वीरवर्द्धमान चरित्र 4.2-59