आय: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
(7 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"><b>1. आय का वर्गीकरण</b></p> | |||
<span class="GRef">पद्मनन्दि पंचविंशतिका/2/32</span> <span class="SanskritGatha">ग्रासस्तदर्धमपि देयमथार्धमेक तस्यापि संततमणुव्रतिना यथर्द्धि। इच्छानुरूपमिह कस्य कदात्र लोके द्रव्यं भविष्यति सदुत्तमदानहेतु:।32।</span> =<span class="HindiText">अणुव्रती श्रावक को निरंतर अपनी संपत्ति के अनुसार एक ग्रास, आधा ग्रास उसके भी आधे भाग अर्थात् चतुर्थांश को भी देना चाहिए। कारण यह है कि यहाँ लोक में इच्छानुसार द्रव्य किसके किस समय होगा जो कि उत्तम दान को दे सके, यह कुछ नहीं कहा जा सकता।32। </span><br> | |||
<p class="HindiText"> - देखें [[ दान ]]।</p> <br> | |||
<p class="HindiText"><b>2. सब गुणस्थानों व मार्गणा स्थानों में आय के अनुसार व्यय</b></p> | |||
<span class="GRef">धवला 4/1,3,78/133/4</span> <span class="PrakritText">सव्वगुणमग्गणट्ठाणेसु आयाणुसारि वओवलंभादो। जेण एइंदिएसु आओ संखेज्जो तेण तेसिं वएण वि तत्तिएण चेव होदव्वं। तदो सिद्धं सादियबंधगा पलिदोवमस्स असंखेज्जदि भागमेत्ता त्ति। </span>= <span class="HindiText">क्योंकि सभी गुणस्थान और मार्गणा स्थानों में '''आय''' के अनुसार ही व्यय पाया जाता है, और एकेंद्रियों में आय का प्रमाण संख्यात ही है, इसलिए उनका व्यय भी संख्यात ही होना चाहिए। इसलिए सिद्ध हुआ कि त्रसराशि में सादिबंधक जीव पल्योपम के असंख्यातवें भागमात्र ही होते हैं।</span><br /> | |||
<p class="HindiText"> - मार्गणाओं को विस्तार से जानने हेतु देखें [[ मार्गणा ]]।</p> | |||
<noinclude> | |||
[[ आम्रवन | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ आयत | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: आ]] | |||
[[Category: करणानुयोग]] |
Latest revision as of 12:43, 7 March 2023
1. आय का वर्गीकरण
पद्मनन्दि पंचविंशतिका/2/32 ग्रासस्तदर्धमपि देयमथार्धमेक तस्यापि संततमणुव्रतिना यथर्द्धि। इच्छानुरूपमिह कस्य कदात्र लोके द्रव्यं भविष्यति सदुत्तमदानहेतु:।32। =अणुव्रती श्रावक को निरंतर अपनी संपत्ति के अनुसार एक ग्रास, आधा ग्रास उसके भी आधे भाग अर्थात् चतुर्थांश को भी देना चाहिए। कारण यह है कि यहाँ लोक में इच्छानुसार द्रव्य किसके किस समय होगा जो कि उत्तम दान को दे सके, यह कुछ नहीं कहा जा सकता।32।
- देखें दान ।
2. सब गुणस्थानों व मार्गणा स्थानों में आय के अनुसार व्यय
धवला 4/1,3,78/133/4 सव्वगुणमग्गणट्ठाणेसु आयाणुसारि वओवलंभादो। जेण एइंदिएसु आओ संखेज्जो तेण तेसिं वएण वि तत्तिएण चेव होदव्वं। तदो सिद्धं सादियबंधगा पलिदोवमस्स असंखेज्जदि भागमेत्ता त्ति। = क्योंकि सभी गुणस्थान और मार्गणा स्थानों में आय के अनुसार ही व्यय पाया जाता है, और एकेंद्रियों में आय का प्रमाण संख्यात ही है, इसलिए उनका व्यय भी संख्यात ही होना चाहिए। इसलिए सिद्ध हुआ कि त्रसराशि में सादिबंधक जीव पल्योपम के असंख्यातवें भागमात्र ही होते हैं।
- मार्गणाओं को विस्तार से जानने हेतु देखें मार्गणा ।