जिनस्तव: Difference between revisions
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<p> अंगबाह्य श्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में दूसरा प्रकीर्णक । इसमें चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया गया है । हरिवंशपुराण 10.125,130 दे अंगबाह्यश्रुत</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> अंगबाह्य श्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में दूसरा प्रकीर्णक । इसमें चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया गया है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#125|हरिवंशपुराण - 10.125]],130 </span>दे अंगबाह्यश्रुत</p> | ||
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Latest revision as of 15:10, 27 November 2023
अंगबाह्य श्रुत के चौदह प्रकीर्णकों में दूसरा प्रकीर्णक । इसमें चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया गया है । हरिवंशपुराण - 10.125,130 दे अंगबाह्यश्रुत