जिनसेन
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- पुन्नाटसंघ की गुर्वावली के अनुसार आप आ.भीमसेन के शिष्य तथा शांतिसेन के गुरु थे। समय ई.श.7 का अंत–देखें इतिहास - 7.8,
- पुन्नाट संघ की गुर्वावली के अनुसार आप श्री कीर्तिषेण के शिष्य थे। कृति–हरिवंश पुराण। समय–ग्रंथ का रचनाकाल शक सं.705 (ई.783)। अत: लगभग ई.748-818। (ती./3/3)। (देखें इतिहास - 7.8)।
- पंचस्तूप संघ। वीरसेन स्वामी के शिष्य आगर्भ दिगंबर। कृतियें–अपने गुरु की 20000 श्लोक प्रमाण अधूरी जयधवला टीका को 40000 श्लोक प्रमाण अपनी टीका द्वारा पूरा किया। इनकी स्वतंत्र रचना है आदि पुराण जिसे इनके शिष्य गुणभद्र ने उत्तर पुराण रचकर पूरा किया। इसके अतिरिक्त पार्श्वाभ्युदय तथा वर्द्धमान पुराण। समय–जयधवला का समाप्ति काल शक सं.759। उत्तर पुराण का समाप्ति काल शक सं.820। अत: शक सं.740-800 (ई.818-878)। (ती./2/339-340)। (देखें इतिहास - 7.7)।
- भट्टारक यश: कीर्ति के शिष्य। कृति–नेमिनाथ रास। ग्रंथ रचना काल वि.1558 (ई.1501) (ती./3/386)।
- सेनसंघी सोमसेन भट्टारक के शिष्य। समय–शक 1577-1580, 1581 में मुर्तियें प्रतिष्ठित कराईं। अत: शक सं.1570-1585 (ई.1513-1528)। (ती./3/386)। (देखें इति - 7.6)।
पुराणकोष से
(1) महावीर निर्वाण के एक सौ बासठ वर्ष पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष के काल में हुए दश पूर्व और ग्यारह अंग के धारी मुनि पुंगवों में सातवें मुनि । महापुराण 76.528, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.45-47
(2) भीमसेन के बाद और शांतिसेन के पूर्व हुए एक आचार्य । हरिवंशपुराण 66.29
(3) आचार्य गुणभद्र के गुरू । ये वीरसेन के शिष्य थे । महापुराण प्रशस्ति 8-9, 43. 40 इन्होंने महापुराण की रचना की थी पर वे उसे पूरा नहीं कर पाये । आचार्य गुणभद्र ने उसे पूरा किया था । इन्होंने पार्श्वाभ्युदय तथा कसायपाहुड की जय धवला टीका की भी रचना की थी । ये हरिवंश पुराणकार जिनसेन के पूर्ववर्ती आचार्य थे । महापुराण 2.153, 57.67,74.7, हरिवंशपुराण 1. 40, पांडवपुराण 1.18
(4) आचार्य कीर्तिषेण के शिष्य, हरिवंशपुराण के कर्त्ता । इन्होंने अपनी यह रचना शक संवत् सात सौ पाँच में वर्द्धमानपुर में नन्न राजा द्वारा निर्मापित पार्श्वनाथ मंदिर में आरंभ कर दोस्तटिका नगरी के शांतिनाथ जिनालय में पूर्ण की थी । ये पुन्नाट संघ के आचार्य थे । हरिवंशपुराण 66.33, 52-54