नीलकंठ: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
||
(3 intermediate revisions by 2 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p id="1">(1) शकटामुख नगर के राजा नीलवान् का पौत्र और नील का पुत्र । हरिवंशपुराण 23.3</p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) शकटामुख नगर के राजा नीलवान् का पौत्र और नील का पुत्र । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_23#3|हरिवंशपुराण - 23.3]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) आगामी तीसरा प्रतिनारायण । हरिवंशपुराण 60.570</p> | <p id="2" class="HindiText">(2) आगामी तीसरा प्रतिनारायण । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#570|हरिवंशपुराण - 60.570]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) एक विद्याधर राजा । यह त्रिशिखर विद्याघर का सहायक था । त्रिशिखर ने वसुदेव के श्वसुर | <p id="3" class="HindiText">(3) एक विद्याधर राजा । यह त्रिशिखर विद्याघर का सहायक था । त्रिशिखर ने वसुदेव के श्वसुर विद्युद्वेग को कारागृह में डाल दिया था वसुदेव ने त्रिशिखर के साथ युद्ध करके अपने श्वसुर को छुड़ा लिया था । इस युद्ध में नीलकंठ भी हारा था । इस युद्ध में हारे हुए नीलकंठ ने एक बार अपनी विद्या से वसुदेव का हरण किया पर वह उसे नहीं ले जा सका । उसने उसको आकाश में छोड़ दिया था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_25#63|हरिवंशपुराण - 25.63]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_25#31|हरिवंशपुराण - 25.31]].4 </span></p> | ||
</div> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 12: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: न]] | [[Category: न]] | ||
[[Category: प्रथमानुयोग]] |
Latest revision as of 15:11, 27 November 2023
(1) शकटामुख नगर के राजा नीलवान् का पौत्र और नील का पुत्र । हरिवंशपुराण - 23.3
(2) आगामी तीसरा प्रतिनारायण । हरिवंशपुराण - 60.570
(3) एक विद्याधर राजा । यह त्रिशिखर विद्याघर का सहायक था । त्रिशिखर ने वसुदेव के श्वसुर विद्युद्वेग को कारागृह में डाल दिया था वसुदेव ने त्रिशिखर के साथ युद्ध करके अपने श्वसुर को छुड़ा लिया था । इस युद्ध में नीलकंठ भी हारा था । इस युद्ध में हारे हुए नीलकंठ ने एक बार अपनी विद्या से वसुदेव का हरण किया पर वह उसे नहीं ले जा सका । उसने उसको आकाश में छोड़ दिया था । हरिवंशपुराण - 25.63,हरिवंशपुराण - 25.31.4