| <p id="1"> (1) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र से, अणुव्रतों और महाव्रतों के पालन से, कषाय, इन्द्रिय और योगों के निग्रह से तथा नियम, दान, पूजन, अर्हद्भक्ति, गुरुभक्ति, ध्यान, धर्मोपदेश, संयम, सत्य, शौच, त्याग, क्षमा आदि से उत्पन्न शुभ परिणाम । सुन्दर स्त्री, कामदेव के समान सुन्दर शरीर, शुभ वचन, करुणा से व्याप्त मन, रूप लावण्य सम्पदा, अन्यान्य दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति, सर्वज्ञ का वैभव, इन्द्र पद और चक्रवर्ती की सम्पदाएं इसी से प्राप्त होती है । इसके अभाव में विद्याएँ भी साथ छोड़ देती है । कोई विद्या भी सहयोग नहीं कर पाती । महापुराण 5.95,100, 16.271, 28. 219, 37.191-199, वीरवर्द्धमान चरित्र 17.24-26, 35-41</p>
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