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| <p> रत्नत्रय-प्राप्ति की दुर्लभता का चिन्तन । यह बारह भावनाओं में ग्यारहवीं भावना है । इसमें मनुष्य भव, आर्यखण्ड में जन्म, उत्तम कुल, दीर्घायु की उपलब्धि, इन्द्रियों की पूर्णता, निर्मल वृद्धि, देव, शास्त्र-गुरु का समागम, दर्शन विशुद्धि, निर्मलज्ञान, चारित्र, तप और समाधिमरण इनकी उत्तरोत्तर दुर्लभता का चिन्तन किया जाता है । महापुराण 11. 108-109, पद्मपुराण 14.239 पांडवपुराण 25.111-116, वीरवर्द्धमान चरित्र 11.113-121</p>
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