बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
देखें अनुप्रेक्षा 1.11 ।
पुराणकोष से
रत्नत्रय-प्राप्ति की दुर्लभता का चिंतन । यह बारह भावनाओं में ग्यारहवीं भावना है । इसमें मनुष्य भव, आर्यखंड में जन्म, उत्तम कुल, दीर्घायु की उपलब्धि, इंद्रियों की पूर्णता, निर्मल वृद्धि, देव, शास्त्र-गुरु का समागम, दर्शन विशुद्धि, निर्मलज्ञान, चारित्र, तप और समाधिमरण इनकी उत्तरोत्तर दुर्लभता का चिंतन किया जाता है । महापुराण 11. 108-109, पद्मपुराण - 14.239 पांडवपुराण 25.111-116, वीरवर्द्धमान चरित्र 11.113-121