वृषभध्वज: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) सूर्यवंशी एक राजा । यह राजा वीतभी का पुत्र और गरुडांक का पिता था । पद्मपुराण 5.8, हरिवंशपुराण 13. 11</p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) सूर्यवंशी एक राजा । यह राजा वीतभी का पुत्र और गरुडांक का पिता था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_5#8|पद्मपुराण - 5.8]], </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_13#11|हरिवंशपुराण - 13.11]] </span></p> | ||
<p id="2">(2) उज्जयिनी का राजा । इसकी रानी कमला थी । महापुराण 71.208-209, हरिवंशपुराण 33.103</p> | <p id="2" class="HindiText">(2) उज्जयिनी का राजा । इसकी रानी कमला थी । <span class="GRef"> महापुराण 71.208-209, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_33#103|हरिवंशपुराण - 33.103]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) महापुर नगर के राजा | <p id="3" class="HindiText">(3) महापुर नगर के राजा छत्रच्छाय और रानी श्रीदत्ता का पुत्र । पूर्वभव में इसे मरते समय पद्मरुचि जैनी ने नमस्कार मंत्र सुनाया था जिसके प्रभाव से यह तिर्यंच योनि से मनुष्य हुआ था । इसने अपने पूर्वभव के मरणस्थान पर जैन-मंदिर बनवाकर मंदिर के द्वार पर अपने पूर्वभव का एक चित्रपट लगवाया था । मंदिर में दर्शनार्थ आये अपने पूर्वभव के उपकारी पद्मरुचि को पाकर उसके चरणों में नमस्कार कर उसकी इसने पूजा की थी । अनुरागपूर्वक पद्मरुचि के साथ इसने चिरकाल तक राज्य किया था । दोनों ने अनेक जिनमंदिर और जिन प्रतिमाएँ बनवाई थी । अंत में समाधिपूर्वक मरकर दोनों ऐशान स्वर्ग में देव हुए । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_106#38|पद्मपुराण - 106.38-70]] </span></p> | ||
<p id="4">(4) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.33, 25. 16</p> | <p id="4" class="HindiText">(4) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 24.33, 25. 16 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
(1) सूर्यवंशी एक राजा । यह राजा वीतभी का पुत्र और गरुडांक का पिता था । पद्मपुराण - 5.8, हरिवंशपुराण - 13.11
(2) उज्जयिनी का राजा । इसकी रानी कमला थी । महापुराण 71.208-209, हरिवंशपुराण - 33.103
(3) महापुर नगर के राजा छत्रच्छाय और रानी श्रीदत्ता का पुत्र । पूर्वभव में इसे मरते समय पद्मरुचि जैनी ने नमस्कार मंत्र सुनाया था जिसके प्रभाव से यह तिर्यंच योनि से मनुष्य हुआ था । इसने अपने पूर्वभव के मरणस्थान पर जैन-मंदिर बनवाकर मंदिर के द्वार पर अपने पूर्वभव का एक चित्रपट लगवाया था । मंदिर में दर्शनार्थ आये अपने पूर्वभव के उपकारी पद्मरुचि को पाकर उसके चरणों में नमस्कार कर उसकी इसने पूजा की थी । अनुरागपूर्वक पद्मरुचि के साथ इसने चिरकाल तक राज्य किया था । दोनों ने अनेक जिनमंदिर और जिन प्रतिमाएँ बनवाई थी । अंत में समाधिपूर्वक मरकर दोनों ऐशान स्वर्ग में देव हुए । पद्मपुराण - 106.38-70
(4) भरतेश और सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.33, 25. 16