शिक्षाव्रत: Difference between revisions
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<p> मुनिधर्म के अभ्यास में हेतु रूप | <div align="justify"class="HindiText"> <p> मुनिधर्म के अभ्यास में हेतु रूप गृहस्थों के चार व्रत— (1) तीनों समयों में सामायिक करना (2) प्रौषधोपवास करना (3) अतिथि पूजन करना और (4) आयु के अंत में सल्लेखना धारण करना। महापुराण में इन्हें क्रमश: समता, प्रौषधविधि, अतिथिसंग्रह तथा मरण समय में लिया जाने वाला संन्यास नाम दिये गये हैं। <span class="GRef"> महापुराण 10.166, <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_2#134|हरिवंशपुराण - 2.134]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_18#45|हरिवंशपुराण - 18.45-47]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:01, 1 March 2024
मुनिधर्म के अभ्यास में हेतु रूप गृहस्थों के चार व्रत— (1) तीनों समयों में सामायिक करना (2) प्रौषधोपवास करना (3) अतिथि पूजन करना और (4) आयु के अंत में सल्लेखना धारण करना। महापुराण में इन्हें क्रमश: समता, प्रौषधविधि, अतिथिसंग्रह तथा मरण समय में लिया जाने वाला संन्यास नाम दिये गये हैं। महापुराण 10.166, हरिवंशपुराण - 2.134,हरिवंशपुराण - 18.45-47